Tuesday 1 August 2017

फिर से वही बारिश आ गयी

बारिश का मौसम आ गया है। बहुत सारी यादें तरोताजा होने लगती हैं। अक्सर यादें जुड़ी होती है जिन्हें हम प्रेम करते है। प्रेम लगभग एक ही प्रकार का होता है और उस प्रेम का कभी अंत नही होता चाहे वह राह चलते किसी अजनबी से हो जाये या वेश्यालय में रहती किसी नारी के साथ। चाहे वह प्रेम किसी सजीव से हो जाये चाहे वह प्रेम किसी निर्जीव पदार्थ से हो जाये। प्रेम एक भावना है जो बिना किसी संवाद के या किसी सूरत के या बिना किसी शरीर का हिस्सा बने भी जीवित रह सकती है। प्रेम का साहित्य बहुत विविध है। इसे समझना और लिखना दोनों ही कठिन है।
-------------------------------------
1..फिर से वही बारिश आ गयी
बचपन आ गया तुम आ गयी
मां झूला झूलाने फिर आ गयी....
कागज की कश्ती उतारा है जैसे
मीलों पानी में चलना सिखाया है जैसे
हम सबने खिलखिलाया है फिर से
मां तुम आयी याद आयी किलकारियों की गूंज
तरंगों का पानी में बनना और ढेले के डूबने की गूंज
झिलमिलाते सपने और दोपहरिया याद आ गयी
हां दरेसी में गहरे पानी में आमों का बहना
फिर बाल्टी भर आम लेकर चखना
और सुबह जागने से पहले मेढकों का जगना
टर्र टराना और उसके बाद बादल का दहाड़ना
सुबह दादी का जगाना और फिर बछिये का बोलना
सावन में मंदिर जाना और मेला जाना
फिर से बचपना आ गया और तुम आ गयी
मां, पिताजी की डांट याद आ गयी
बचपना आ गया तुम आ गयी।
फिर से वही बारिश आ गयी......
2..फिर से वही बारिश आ गयी
प्यारी दिल्ली आ गयी तुम आ गयी
रिमझिम सावन आ गया, बूंदें आ गयी
उजड़े दिलों में फिर से मस्ती आ गयी
कोंपलों पर गिरी आसमानी बूंदें
तुम्हें छूयीं और फिर मुझे छू गयीं
वो रास्ते जहां से तुम गुजरी थी
मैं गुजरा था, आखों में नमी गुजरी थीं
वफ़ाएँ मौसम में थी, मौसमी हवाएं थी
ठिठुरने का तुम्हारा अंदाज मुझे छू गई थीं
भींगे हाथों का मेरी कलाई पर आना फिर
सनम तुम्हारी बारिश की चाय और तुम आ गयी
वो उड़ती हवा में तुम्हारी जुल्फें
बारिश में देखती तुम्हारी काली आंखें
केवल देखना तुम्हें और तुम्हारा मुझे देखना
पता नही क्या क्या फिर कह गयी.....…..
धीरे - धीरे मेरी आंखों के सामने बादल छा गयी
वो बारिश की यादें और आंखों में नमी आ गयी
फिर से वही बारिश आ गयी!!
-प्रभात
तस्वीर गूगल से साभार


7 comments:

  1. यदि आप कहानियां भी लिख रहें है तो आप प्राची डिजिटल पब्लिकेशन द्वारा जल्द ही प्रकाशित होने वाली ई-बुक "पंखुड़ियाँ" (24 लेखक और 24 कहानियाँ) के लिए आमंत्रित है। यह ई-बुक अन्तराष्ट्रीय व राष्ट्रीय दोनों प्लेटफार्म पर ऑनलाईन बिक्री के लिए उपलब्ध कराई जायेगी। इस ई-बुक में आप लेखक की भूमिका के अतिरिक्त इस ई-बुक की आय के हिस्सेदार भी रहेंगे। हमें अपनी अप्रकाशित एवं मौलिक कहानी ई-मेल prachidigital5@gmail.com पर 31 अगस्त तक भेज सकतीं है। नियमों एवं पूरी जानकारी के लिए https://goo.gl/ZnmRkM पर विजिट करें।

    ReplyDelete
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (02-08-2017) को गये भगवान छुट्टी पर, कहाँ घंटा बजाते हो; चर्चामंच 2685 पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  3. इन यादों को यूँ सहेजना अच्छा लगता है।

    ReplyDelete
  4. बहुत ही खूबसूरत अल्फाजों में पिरोया है आपने इसे... बेहतरीन

    ReplyDelete
    Replies
    1. thanks bhaskar ji....isse bhi khoobsoorat aapke comments jo milte hai

      Delete

अगर आपको मेरा यह लेख/रचना पसंद आया हो तो कृपया आप यहाँ टिप्पणी स्वरुप अपनी बात हम तक जरुर पहुंचाए. आपके पास कोई सुझाव हो तो उसका भी स्वागत है. आपका सदा आभारी रहूँगा!