हुनर इस जिंदगी में जो सीखे, सब उसकी खुशी
को लगाता हूँ
अपनी खुशी उससे मांगता हूं और वो खुद भी यही करती है
हम ऐसा नही कर सके कि खुशियां दोनों को मयस्सर हो
चिता को देख लेगी शायद वो मगर चिंता नही छोड़ेगी
दिलों को बर्बाद कर ले शायद मगर वो कहना नही छोड़ेगी
आरजू मन की बस मन तक ही रह जाती है
राहें अलग हो जाते हैं, रास्तों में कीचड़ रह
जाती है
लाख सजाए दीपक मगर अंधेरे में रहना है
शायद जिंदगी को जिंदगी बेवजह कहना है
हम दोनों ही नही समझते और समझना शायद चाहते हो
दीवार गहराई तक ले आए नींव में शायद बरकत हो
हम ऐसा नही कर सके कि खुशियाँ दोनों को मुकम्मल हो
चोट बहुत करती है जब अचानक बिछड़ जाए
आंसू तभी बहते है जब बिछड़ कर फिर मिल जाये
मिलकर कभी इतना नही पा सके कि सम्मानी ए खुशियां हो
एक दिल पर उसका हाथ और एक दिल पर मेरा हाथ हो
इसे कौन कहेगा कि जिंदगी किताब बन कर ही रह जाए
हम कुछ भी हो, गुनाह इस जिंदगी का ही लगता
है
शायद तोड़ दिया था उसका दिल जो अब तक जुड़ नही पाया
बेआबरू होकर नींद में घायल उसे भी कर रहा होता है
टूट गयी सारी तहजीब हमारी रिश्तों को जोड़ने में
शायद आंच आ गयी थी कभी हमारे दिल के तहखाने में
चाहकर भी शायद कभी ही कुछ मिल सका हो
हम ऐसा नही कर सके कि खुशियां दोनों को मुकम्मल हो
-प्रभात
तस्वीर गूगल साभार
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