दर्पण
from -google |
हाँ जिसमें दिखता हूँ खूबसूरत मैं
मुझे वही दर्पण पसंद है....
शर्त हैं उस आईने
की,
कि मुझे अहसास दे
सुन्दर भावों की,
मधुर स्वभावों की,
सरल विचारों की
जिससे प्रकट हो सके
एक पूर्ण मुस्कान मेरे चहरे पर
मुझे वही चेहरा पसंद है
हाँ जिसमें दिखता हूँ खूबसूरत मैं
मुझे वही दर्पण पसंद है....
पर चाहता तो हूँ
कभी कभी मुझे दिखाना
उस हकीकत को
जिसमें मैं होता हूँ
वास्तविकता के करीब,
रंग व बनावट के पास,
झुर्रियों के नजदीक,
निर्बल काया के समीप,
देख सकूँ गुण और अवगुण अपने
और बदल सकूँ खुद को
क्योंकि बिखेरना चाहता हूँ
तुम्हारे लबों पर भी मुस्कराहट
कहता हूँ इसलिए ही तो
मुझे वही दर्पण पसंद है....
हाँ जिसमें दिखता हूँ खूबसूरत मैं
मुझे वही दर्पण पसंद है....
-प्रभात
(राष्ट्रीय समाचार पत्र (हमारा
मेट्रो) में प्रकाशित रचना)
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " पिंगली वैंकैया - भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के अभिकल्पक “ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत आभार
Deleteसादर आभार
ReplyDeleteएक सार्थक रचना... अपने और अपने प्रतिबिम्ब के माध्यम से अंतर्मन के द्वंद्व को बड़ी ही खूबसूरती से दिखाया है! बहुत अच्छे!
ReplyDeleteसबसे पहले आभार व्यक्त करता हूँ, आपका यहाँ तक आकर अपने विचार व्यक्त करना वाकई मेरे लिए काफी खुशी की बात है। धन्यवाद
Deleteबेहतरीन रचना के लिए आपको बधाई ...
ReplyDeleteएक नई दिशा !
बहुत आभार...
Delete