Saturday, 13 August 2016

गुजारा हो नहीं सकता

       एक गीत वहां भी है जब “गाड़ियों के हॉर्न” सुनते हुए बच्चा रो रहा होता है. जब गुजरा था एक बार उस फूटपाथ से तो लगा कि अजीब दुनिया में मैं आ गया हूँ...किन्तु जो बच्चा फूटपाथ पर बिछी काली चादर में पैदा होने के बाद नाली के काले गंदे पानी से पहली बार स्नान कर रहा था तो वह शायद जीवन भर इसी में स्नान करते हुए अपनी कहानी लिख जाए. उस बच्चे को क्या पता कि दुनिया इतनी भी खराब होती है. गरीबी का यह आलम देखते हुए मन पसीज गया, बहुत सोंचा कोई उपयुक्त कविता लिख सकूँ हिम्मत हार गया....बस मन के भाव थोड़े से बच कर प्रश्न पूछते है अपने आप से.....पूछ भी सकते थे अपनी मां से परन्तु माँ की स्थिति तो उस नंगे बच्चे से भी बदतर है क्योंकि माँ “माँ” है और वह तो खुद बच्चा जो कि निर्वस्त्र खेल सकता है..............................  

मेरे अपनों की महफ़िल में गुजारा हो नहीं सकता
किसी गैर के चरणों में सहारा हो नहीं सकता  
मेरी किस्मत में है, जो लेटा हूँ फुटपाथ पर
गोंद में लिपटा हूँ,  इक मां के दुलार पर
मेरे जन्म के गीत रेड लाईट की शोर सुनाती है
सडकों पर चलते वाहन, रोते कोई सुन नहीं सकता
मेरे अपनों की मेहनत से गुजारा हो नहीं सकता ...............

साभार
प्रभात

(पूसा के फूटपाथ पर दिखी एक गरीब झलक)

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-08-2016) को "कल स्वतंत्रता दिवस है" (चर्चा अंक-2434) पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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