Tuesday, 21 February 2017

विहान

यूँ ठहर गया है चाँद जैसे झिलमिल सा संसार जैसे 
खुशबूं का अहसास जैसे पावन हरिद्वार जैसे
महलों का जीवन है, सोने में लिपटा हुआ है
सब कुछ मिला हुआ है, जीवन खिला हुआ है
फिर अँधेरा क्यों है, बदली है आसमान में जैसे
सूरज नहीं तो सवेरा कैसे, चिड़ियों का बसेरा कैसे
शायद बदला है इंसान जैसे, प्रेम और प्रमाण जैसे
रामायण में श्रीराम जैसे, सीता का अपमान जैसे
अभिमन्यु है मैदान में जैसे, छूट गया सब साथ कैसे
सूख गया है तालाब जैसे, व्याकुल है शैवाल जैसे
होता वही आया है, लिखे गए जो विधान जैसे
मन चंचल है अब भी, थोड़ा तो समझ लो छुईमुई 
जागृत होगा पुनः रोम रोम, होगा जीवन प्रेम मयी
तिमिर छटा होगा वैसे, होगा विहान हृदय में जैसे

-प्रभात

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