Sunday 12 February 2017

आओ 'खो' जाएँ 'रागिनी'

 आओ 'खो' जाएँ 'रागिनी'


अक्सर उल्फ़त में खो जाने का मन करता है। कभी आसमान में उमड़ते घुमड़ते बादल के बीच, तो वहीं कभी बैठे- बैठे अपने आप को थोड़ी देर के लिए सागर के हिलोरों के बीच ले जाकर ।
उल्फ़त में 'खोना'एक ऐसा रोमांचक शब्द है जिसकी कल्पना कर भर लीजिये, आपकी साँसे जोर-जोर से चलने लगेगी। ख्याल और या यूँ कह लीजिये यादें 'रूह' के किसी एक कोने में उमड़ने घुमड़ने लगेगी। जब रूह तक बात पहुँचती है तो जिस्म तक शून्य हो जाता है। लगता नहीं कभी इतना बेहतर ध्यान हो पायेगा। आँखे देखती नहीं अब, ह अब अहसांसों के आंसू को भी 'खो' देना चाहती है। शायद इसलिए ही क्योंकि खोना अपने आपमें जिंदगी के सुनहरे स्वपनों की एक नयी फसल उगाती है। पुतलियों को सींचती है। इतना ही नहीं अब तो थकावट में अक्सर आँखे कुछ देखना नहीं चाहती शायद वह अब अगर कुछ और खो दें तो आत्मा अपने वश में नहीं रह पायेगी।
इसलिए कहता हूँ जब भी 'खोना' हो । तो इसका मेल चाहे किसी से भी हो, एहसास एक जैसे होते है। खोना का अर्थ त्यागना, किसी अपने को खो देना, किसी की यादों में खो जाना या किसी भी प्रकार से अन्य सन्दर्भ में प्रयोग करके देखिये। आप खोइए जरूर तभी जिंदगी का पहिया घूम पायेगा और आप आगे बढ़ पाएंगे।
- प्रभात

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