प्रिय रागिनी,
खतों के इस सिलसिले में मैंने अभी तक सैकड़ों ख़त लगभग तुमको लिख लिए
है...कुछ को तुमसे छिपाया है कुछ को सबसे छिपाया है....मतलब तुमसे छिपाया तो इसका
मतलब खुद से छिपाया...लगता है मैं तुमसे प्यार करता हूँ...अब तुम्हें तो यकीन हो
गया होगा....लेकिन मुझे लगता है इस बार रागिनी तुम पत्थर नहीं “मैं पत्थर हूँ”....क्योंकि तुम प्यार करती हो और मैं
शिला बनकर तुम जैसे पवित्र नदी का मार्ग बंद कर देता हूँ...मैंने इसलिए ख़त लिखा की
हर आशिकी की कहानी में प्रेमिका कुछ यादें अक्सर छोड़ जाती है...तुमने भी छोड़ दिया है भौतिक और नैसर्गिक दोनों ही
बातों में....यादें मगर किसकी.....कुछ गुलाब के फूल की तो उसकी कुछ खुशबूं
भी....कुछ गीत.....कुछ चंचल मन में थिरकती जिस्म का कोई इक हिस्सा और उस पर मधुर
सौन्दर्य का एहसास कराती सूरत पर हंसी की वो गहराई, जिससे मैं ही शर्मा गया था...कुछ पल के
लिए.
तुम्हें .....याद है न तुम्हारे
दांतों की कहानी ...अब मुझे तो याद नहीं...अक्सर बतियाते रहते है सुबह सुबह मेरे
और तुम्हारे टूथब्रश इक साथ ही..पता नहीं क्या कहते है ...शायद यही कि तुम मुझे
छुपा क्यों नहीं देते....मेरे और तुम्हारे बीच झगड़ा हो गया है उन्हें भी मालूम
है.....इन सबके बावजूद कुछ न कुछ पता नहीं क्यों दिन रात तुम्हारी याद दिलाते
है....शिला बनने के बाद भी मैं टूटना चाहता हूँ और मिट्टी में मिल जाना चाहता हूँ
...ताकि इश्क में दूरियों का प्रेम न तो अहसास करा सके.... न पास आ सके और न ही
दूर जा सके .....न ही कभी मिल सके और न ही कभी बिछुड़ सके.....हाँ मैं टूट जाऊँगा
जल्द ही देखना ये है कि मुझे तोड़ने के लिए अब किस ताकत का इस्तेमाल होगा और कौन
करेगा.....सबसे पहले तुम या और मैं खुद ही......
चिंता मत करों
रागिनी....तुम्हारे लिए इस वर्ष का आख़िरी ख़त शायद यही है.....इसके बाद बसंत ऋतु
खत्म और उसी के साथ ये प्यार भरा ख़त भी लिखना बंद हो जाएगा....माफ़ करना मुझे
परन्तु लोगों की इच्छा ही यही है....प्यार और इजहार करने का समय तो होना ही चाहिए.
तुम्हारा
प्रभात
तुम्हारा
प्रभात
(तस्वीर गूगल से साभार)
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