Friday 17 February 2017

रागिनी है कौन ?

फेसबुकहा दोस्तों, आज आपको फिर एक पोस्ट रागिनी के नाम की पढ़ा रहा हूँ। ताकि ये समझने का सिलसिला चलता रहे कि आखिर रागिनी है कौन ?
प्रिय रागिनी,
आजकल हर घर में आशिकों की जमात उभर आयी है, जैसे अपने गाँव के बीच खुदे सरोवर में जलकुंभी उग आते है। नहीं पता था कि हम यानि मैं और तुम ही इस विद्यार्थी जीवन में सच्चे और अच्छे भारतीय कपल है। तुम्हे याद है रागिनी जब हम मिले थे तो बस मुस्कुरा दिए थे, लगा था कि कोई गुलाब खिल गया हो। तुम थोड़े से खिले और ऐसा लगा कि किसी ने महकते गुलाब की कली से आ रही खुशबूं को मेरे अंतर्मन में घुसा दिया हो। जब भी अपनी मुस्कराहट लबों पर बिखेरती तो साँसे हवाओं की तरह चलने लगती और मेरे दिल के आँगन में साँसों की प्यारी खुशबूं मेरा दिल जीतने लगती। तुम्हें क्या ऐसा नहीं लगा था...क्यों, नहीं लगेगा। कहोगी ही..... पागल ।

रागिनी मुझे लगा था तुम्हारे हर शब्द तुम्हारे अपने है लेकिन नहीं पता था कि आशिकी के शब्द तो तुम्हारे और मेरे ही नहीं है ये तो किसी आशिक़ के कॉपीराईट के अंतर्गत भी नहीं आता...आता है क्या। नहीं न!!! क्योंकि आशिकी में अक्सर अल्फाज एक जैसे ही हो जाते है। तुम्हें पता है जब हमारे प्यार का सिलसिला चल रहा था तो तुम्हारे हर एक शब्द मेरे हृदय को जीतते जा रहे थे। मुझे तुम्हारी गालियां भी तुम्हारे मुखड़े की पवित्रता को बताते हुए मुझसे कह रही थी कि तुम ही मेरे डार्लिंग हो। तुम्हारे शब्द लगते थे कि अभी खुद की फैक्ट्री से बन कर आये हो....है भी तो ऐसा नही है, तो याद करो कि प्रिये तुमने क्या कहा था जब मैंने कहा था कि "गुड नाईट" तो तुमने कहा था "गो टू हेल".....जब मैंने कहा "क्या?" तुमने कहा "कुछ नहीं"....जब मैंने कहा "बहुत बोलती हो" तो तुमने कहा "गोबर खा लो"....मैंने कहा "लव यू" तो तुमने कहा "हेट यू टू"...मैंने कहा "चलो बाय"...तुमने कहा 'रुको पागल'। मैंने कहा "क्या करें" तुमने कहा कि "नाच लो"..ये शब्द प्यार के नहीं है लेकिन ...ये शब्द आशिकी के है....
ये शब्द शायद केवल आशिक के है लेकिन मामला पूरा का पूरा द्विपक्षीय का मालूम पड़ता है। लेकिन विश्वास मानों रागिनी तुम बहुत अच्छी थे और हो और रहोगे। इन शब्दों की कॉपी राईट मेरे और तुम्हारे अलावा किसी के पास नहीं है।
रागिनी कई बार ऐसा होता है कि तुम सिसकती नजर आ रही होती हो, मेरे सपनों में। किसी कम्बल के अंदर मुंह छुपा कर मुझे याद कर रही होती हो लेकिन मुझसे किसी कारणवश मिल नहीं पाती । अचानक आंटी आती है और कहती है रागिनी...खाना खा लो। आओ जल्दी...आओ जल्दी...ऐसे ऐसे करके 5 बार आंटी ने बुलाया और तुमने कुछ कहा नहीं। उन्हें लगा कि रागिनी बिटिया सो रही है लेकिन तुम भी न....सो तो रहे ही न थे....नम आँखों को थोड़ा ममता की आहट के डर से सुखाकर आंख मलते हुए रसोई में पहुंचकर शनैः शनैः दबी आवाज में बोलती है मम्मी आज कम खाऊँगी नींद आ गयी थी, सर दर्द हो रहा था। खाते खाते अचानक ही मम्मी पूछती है बेटा रोटी दूँ? रागिनी तुम कहती नहीं हो...और फिर माँ पुकारती है....कुछ कहती नहीं हो। पता है रागिनी तुम मेरे ख्यालों में थोड़ी बहुत मुस्कुरा रही थी और भूल गयी थी कि तुम अपने मम्मी के सामने बैठी हुई थी । रागिनी ऐसा करने के बाद भी तुम न!!....सुधरी नहीं।
आशिकी में तुम और हम नहीं है, पूरी दुनिया है इसलिए थोड़ा विमर्श का मुद्दा सामने है। रागिनी बड़ी शिद्दत और इबादत से रिश्ते बनते है लेकिन एक बात है शब्द हमारे नहीं होते लेकिन आशिकी में सारे शब्द हमारे ही होते है।

तुम्हारा
प्रभात
तस्वीर गूगल साभार

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