यात्रा वृतांत
चलिये दोस्तों आगामी 6 जनवरी को
परीक्षा खत्म होते ही कहीं घूम लिया जाए। बहुत ठण्ड है, ऐसी
जगह चले जहाँ बर्फ देखने को मिल जाए। खूबसूरत वादियां हो, जहाँ
हम सब प्रकृति प्यार में पड़कर कुछ समय के लिए उसी में खो जाए। बहुत बड़ी पहाड़ी हो।
जहाँ नदियां पास से होकर बहती हो। अच्छा तो शिमला चल लिया जाए? किसी ने कहा। नहीं डलहौजी चल लिया जाए। दूसरे ने राय दिया। आखिर डलहौजी,
धमर्मशाला और खासकर मैक डोनाल्डगंज जाने पर हम 16 लोगों की सहमति बन गयी। जैसे जैसे समय पास आता गया, साथ
घूमने जाने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन घटती चली गयी जैसे बाढ़ आने के बाद एकाएक
उत्साह नजर आता है और धीरे धीरे उसका भयावह रूप समझ आता है। जैसे जैसे दिन बीतते
जाते है तो पानी 1 - ,1 फुट कम होता जाता है और 3-4 दिनों बाद बिल्कुल कम हो जाता है, जब पानी थोड़ा बहूत
ही बचा होता है तो सब कुछ अस्त व्यस्त सा गन्दा माहौल देखने पर प्रतीत होता है।
ठीक वैसे ही स्थिति हमारी 6 तारीख यात्रा पर जाने से पहले 4
तारीख को हो चली थी। अब साथ चलने वाले घुम्मकड़ों की संख्या मात्र
देखने में 5 ही बची थी।
4 तारीख को ही मनाली जाने का प्लान बनता है। देव प्रभाकर जी की कृपा से गाड़ी भी सायं 7 बजे के आसपास जुबली हाल के पास आकर खड़ी हो जाती है। कुल 6 लोग जुबिली हॉल के गेट से 6 जनवरी को प्रस्थान करती है। जय हनुमान, जय भोले जैसे जयकारों के साथ गाड़ी आगे बढ़ने लगती है।
दिल्ली से आगे हरियाणा में जाकर एक बार हम सभी रुकते है। पार्टी मूड में सभी सामान खरीदते हुए, कोल्ड ड्रिंक्स, उसका चखना अर्थात चिप्स के साथ खाते पीते हुए आगे बढ़ते है। अब कार करनाल रोड पर रुकती है, हम सभी उतरते है फोटोग्राफी होती है। मेरे, जयदीप, आकाश और देव के अतिरिक्त बचे ड्राइवर और अपने अब खास मित्र रिंकू, अतिरिक्त साथी राहुल जी से अब बातों ही बातों में बहुत अच्छी दोस्ती हो जाती है। सभी 6 लोगों में कोई भी एक दूसरे के लिए अनजान नहीं रहा। रात्रि का खाना खाते है और आराम से कार में बैठ जाते है। गाड़ी टोल टैक्स से होकर गुजरती है, रात्रि के 9 बज चुके होते है। टोल बूथ पर प्रेस का कार्ड दिखाया जाता है, और टोल वाला थोड़े पैसे लेते हुए अपनी गाड़ी को आगे पास कर देता है। अगले टोल आने की तैयारी में देव जी ने डी एस एल आर कैमरा गले में लटका लिया। मैंने, आकाश जी और सभी ने अपनी स्थिति पत्रकारों की तरह बना लिया। प्रेस का कार्ड रिंकू भाई ने संभाल लिया, अब शायद उस स्थिति में अपने आपको संभाल लिया था, जैसे कि थोड़े समय पहले गाड़ी चलने से पहले फेसबुक पर तीन फोटो आकाश जी ने डाल रखा था, कैप्शन था..."पत्रकारों की टोली मनाली रवाना होते हुए।"
रात भर रुकते हुए, चिप्स खाते हुए, दिल्ली के पर्यावरणीय प्रदूषण का धुंआ पीते हुए आगे हरियाणा, चंडीगढ़ होते हुए कोल्ड ड्रिंक्स का आनंद लेते हुए हम सभी आगे पहाड़ों की ओर बढ़ चुके थे। कई मौकों पर प्रेस की अपनी गाड़ी रोक कर बेइज्जती करने की कोशिश की गयी परंतु हमारा बाल भी बांका नहीं हुआ। पहाड़ों की ओर आते ही कार में स्पीकर में लगे गाने का आनंद 100 गुना आने लगा था। जीता था जिसके लिए.....पर तो बवाल हो जाता था। कार, कार न रहते हुए एक स्पीकर में गाने चलने की वजह से, एक क्लब बन चुका था। हम अनुशासित पत्रकारों का।
पहाड़ों की ओर प्रस्थान करते हुए देव भाई ने अपना क्रांतिकारी स्लोगन पेश किया, क्या....छोड़ना गलत था? हम सब एक साथ बोलते है कि... नहीं । इस पर भी देव भाई को हम सभी का उत्तर हजम नहीं हुआ और कहते है, एक बार और पूछना चाहता हूँ , क्या......खैर ये विषय नहीं था। विषय था यात्रा वृतांत का।
....फिर मिलते है, अभी तो मनाली की ओर जा रहे है।
-प्रभात
नोट: ध्यान दीजिए अब तक जो कुछ पढ़ा है, शत प्रतिशत सच्चाई के साथ लिखा गया है। कुछ भी छुपाया नहीं गया है।
नोट: ध्यान दीजिए अब तक जो कुछ पढ़ा है, शत प्रतिशत सच्चाई के साथ लिखा गया है। कुछ भी छुपाया नहीं गया है।
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