Monday, 30 January 2017

मेरी प्रिय डायरी,

मेरी प्रिय डायरी,
वो दिन याद है न जब मैं तुम्हें चाँदनी चौक पर मिला था। बहुत नहीं जानता था तुम्हारे बारे में ...बस इतना जानता था कि तुम मोटी हो और साधारण। इसलिए तुम्हें मैंने उठा लिया था। नहीं पता था कि तुम हर वक्त पर मेरा साथ दोगी। तुम तो अच्छे दोस्त की तरह मेरे बिस्तर पर तकिये के पास दुबक कर मेरा इन्तजार करते हो। मैं इतना बुरा हूँ कि तुम्हें हमेशा सबसे बाद में और बुरे वक्त में ही याद करता हूँ।
 -तस्वीर गूगल से साभार

तुमसे छिपाऊं भी क्या। तुम तो जानती ही हो। उस अवसर पर भी तुम्हे नहीं याद किया जब मैं सबसे ज्यादा खुश था। तुमसे संवाद करने की कोशिश भी किया तो बस 1 पंक्ति में समेट दिया। जब बर्फ ही बर्फ थे, वादियां हसीं थी। नैसर्गिक प्यार था। हवाएं चल कर मेरे मन को शीतल कर रही थी। नदी बगल से बह रही थी। चांदनी रात में खुले आसमान तले पत्थर पर बैठकर झरने की आवाज सुन रहा था। ऐसे समय में भी तुम्हें नहीं याद किया। लेकिन तुम जरा भी नाराज नहीं हुए और हर प्रकार की कलम को तुम पकड़ने के लिए महीनों इन्तजार करते हो।
तुमसे तो हर बात भी नहीं बताता लेकिन तुमने कभी मना नहीं किया कि मुझे छोड़ दो। तुम्हें तो लोग हर साल छोड़ देते हूँ लेकिन अभी भी मैं तुम्हें ही पकड़ा हुआ हूँ। पता है अभी तुमसे बहुत बात करना है मुझे...मुझे विश्वास भी है तुम ही एक ऐसी प्रिय दोस्त हो जो मुझे अच्छे से सुन लेते हो, बाकि दोस्त ऐसा नहीं कोई ....जो मुझे सुन सके। दुनिया का सबसे खराब इंसान मैं ही बन जाता हूँ, अगर किसी को अपना समझ चर्चा कर भी लेता हूँ। मैं हर बुरे वक्त में भी सबसे पहले अपने इस दुनिया में मिले हज़ारों दोस्तों के बारे में सोंचता हूँ और कोई ऐसा नही दिखता, जिससे मैं कुछ साँझा कर सकूँ।
बहुत सोंचने पर मेरे कुछ अपने लोग ध्यान आते है, जिन्हें मैं अपने आपको उनकी अमानत समझता हूँ, इसलिए भी उनसे नहीं कुछ कहता कि उन्हें तकलीफ हो जायेगी....और बात तो ये भी है कि मुझे शर्म भी आ जाती है। मैं पितृ भक्ति में खूब विश्वास रखता हूँ इसलिए मैंने हर जगह पिता को अनुसरण किया है। माता से भी छुपा लेता हूँ कुछ न कुछ क्योंकि अपनी अम्मी इस हालात में नहीं होती कि सब कुछ सुन सकें। इन सबके इतर तुम ही अंत में ध्यान आते हो। लेकिन तुमने कभी बुरा नहीं माना।
ये दोस्ती भी तुमसे एकतरफा ही है क्या?? कि अपने स्वार्थ के लिए तुमसे हाथ मिला लेता हूँ और तुम हो कि मुझसे इतना प्यार करते हो कि कभी नहीं समझे कि मैं स्वार्थी हूँ। शायद इसलिए कि तुम्हें तरजीह तो देता हूँ आदि से अंत तक...अब तक। आगे भी तुम ही सुनोगे और सुनाओगे। संवाद जारी रहेगी दोस्त तुमसे....इसलिए कि तुम मेरे अपने हो। और सबसे अच्छी बात कि तुम्हें पकड़कर ऐसा लगता है कि मेरा सर दर्द भी ख़त्म हो गया है, मेरी सोंच खुल जाती है। मेरे आंसुओं से एक नयी रचना का सृजन हो जाता है। एक नयी प्रेरणा जन्म लेती है। हौंसलों को नया आयाम मिल जाता है। इसलिए दोस्त नाराज मत होना....चलो खुद हो भी जाना पर मुझे तो मत ही करना दोस्त......
@प्रभात



No comments:

Post a Comment

अगर आपको मेरा यह लेख/रचना पसंद आया हो तो कृपया आप यहाँ टिप्पणी स्वरुप अपनी बात हम तक जरुर पहुंचाए. आपके पास कोई सुझाव हो तो उसका भी स्वागत है. आपका सदा आभारी रहूँगा!