Wednesday, 11 January 2017

कभी ख्वाबों में

कभी ख्वाबों में आ रही हो
कभी बातों में आ रही हो
खूब यादों से सता रही हो
मेरी धड़कन हो तुम
मेरी साँसे हो तुम
अपनी बाहों में लिटा रही हो
मध्यम मध्यम सुला रही हो
चाहत को बयां कर दिया
मैंने सब कुछ समर्पित किया
बेवजह नाराजगी दिखा रही हो
अब मुझे क्यों भुला रही हो
क्यों छोड़कर, चली जाओगी 
मुझे शायर बना जाओगी
मेरी हसरतों को जला रही हो
दीवाना बहुत बना रही हो
कभी ख्वाबों....
-प्रभात



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