Tuesday, 13 September 2016

गाँव मेरा बदल गया, घर मेरा नहीं बदला

परिवर्तन की इस होड़ में, “मैं” नहीं बदला
गाँव मेरा बदल गया, घर मेरा नहीं बदला
मेरा घर 

कुछ कहानियां बदल गईं, भाव नहीं बदला
परिस्थतियाँ बदल गई, झुकाव नहीं बदला

कुछ गाने बदल गए, कुछ पैमाने बदल गए
रस्म, रीति-रिवाज और मयखाने बदल गए
जमाने बदल गए, फिर ठिकाने बदल गए
परिवार बदल गया, हमसफ़र नहीं बदला
गाँव मेरा बदल गया, घर मेरा नहीं बदला  (१)

छप्पर बदल गया नीचे चूल्हा बदल गया
हवा बदल गयी,  हेलीकॉप्टर बदल गया
टिड्डियों, तितलियों का जत्था बदल गया
बारिश बदल गयी, एहसास नहीं बदला   
गाँव मेरा बदल गया, घर मेरा नहीं बदला  (२)  
     
फसल बदल गए, पानी-बरहा बदल गया
चावल का ज्योनार और चरहा बदल गया
फसल लोकगीत और बिरहा बदल गया   
खलिहान बदल गए पर खेत नहीं बदला
गाँव मेरा बदल गया, घर मेरा नहीं बदला   (३)  

प्रभात “कृष्ण”

2 comments:

  1. बारिश बदल गयी, एहसास नहीं बदला
    गाँव मेरा बदल गया, घर मेरा नहीं बदला
    जिंदगी जीवन में ऐसे कितने पल खड़े करती है ... खुद से ही इसका जबाब लेना होता है ... गहरी रचना ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी और जवाब में बस यादें और ये कविता ही मिलती है।

      Delete

अगर आपको मेरा यह लेख/रचना पसंद आया हो तो कृपया आप यहाँ टिप्पणी स्वरुप अपनी बात हम तक जरुर पहुंचाए. आपके पास कोई सुझाव हो तो उसका भी स्वागत है. आपका सदा आभारी रहूँगा!