आवेश
सबसे अधिक चोट लगती है तो शब्दों से
और सबसे अधिक खुशी होती है तो भी शब्दों से
आवेश में कभी कभार हम कुछ कहते है
रोते भी है पर कहे शब्द वापिस नहीं आते है
क्योंकि सबसे अधिक चोट लगती है तो शब्दों से
टूट जाते है रिश्तों में बंधे कई हाथ
छूट जाते है प्यार भरी जिंदगी की कई रात
दोपहरिया में उदासी, रातों में नींद की उलझन
एक अलग सी छटपटाहट दर्द भरी,
मलहम लगाने की कोशिशें पर
लगातार गुस्से में आये पसीने से तर होकर
नासूर बनी अंतरात्मा तब तक ठीक नहीं होती
जब तक फिर से वही रिश्ता पनपे न
क्योंकि सबसे अधिक चोट लगती है तो शब्दों से
और सबसे अधिक खुशी होती है तो भी शब्दों से
और सबसे अधिक खुशी होती है तो भी शब्दों से
आवेश में कभी कभार हम कुछ कहते है
रोते भी है पर कहे शब्द वापिस नहीं आते है
क्योंकि सबसे अधिक चोट लगती है तो शब्दों से
टूट जाते है रिश्तों में बंधे कई हाथ
छूट जाते है प्यार भरी जिंदगी की कई रात
दोपहरिया में उदासी, रातों में नींद की उलझन
एक अलग सी छटपटाहट दर्द भरी,
मलहम लगाने की कोशिशें पर
लगातार गुस्से में आये पसीने से तर होकर
नासूर बनी अंतरात्मा तब तक ठीक नहीं होती
जब तक फिर से वही रिश्ता पनपे न
क्योंकि सबसे अधिक चोट लगती है तो शब्दों से
और सबसे अधिक खुशी होती है तो भी शब्दों से
प्रभात
"कृष्ण"
prabhat ji bilkul sahi keha..shbdon mein admay shakti hai
ReplyDeleteiss liye prayog bhi sarthak hi hona chahiye
पारूल जी, सबसे पहले आपका आभार....आप यहाँ तक आयी और मुझसे जुड़कर यहाँ मेरा हौसला बढ़ाया. शब्दों में शक्ति तो है ही, जिन्दगी का अंत और शुरुआत दोनों ही इसी से होता है!!!!
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (21-09-2016) को "एक खत-मोदी जी के नाम" (चर्चा अंक-2472) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत-बहुत आभार!!
Deleteएक दोराहे पर खड़ा मन ....असमंजस में
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