ख्वाहिशें दिल की हैं जो कुछ
जब कभी पूरी न होंगी
तो रेत पर बैठकर भींग जाऊंगा
आँसुओं की धार जारी हो
इससे पहले तट पर लेट जाऊंगा
संगम के वेग को थामने
मैं शिला बनकर पहुँच जाऊँगा
फैसले से ज़िन्दगी में भटकूँ गर
साँस को रोकना सीख जाऊंगा
पसीने से तर होगी हथेली तो
शीतल मुस्कुराहट दे जाऊंगा
चमकते तारे में देख तुम्हे
प्रकाश जुगनूं का सौप जाऊंगा
प्रभात “कृष्ण”
बहुत बहुत आभार
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद आपको देख कर खुशी हुई, आभार
ReplyDeleteविनम्र आभार
ReplyDeleteकितना कुछ है इन लफ़्ज़ों में ……… गहन अत्यंत गहन |
ReplyDeleteआपका शुक्रगुजार हूँ, गहनता ढूढ़ लिया आपने।
Deleteआपका शुक्रगुजार हूँ, गहनता ढूढ़ लिया आपने।
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