Tuesday, 13 September 2016

रेत पर बैठकर भींग जाऊंगा

ख्वाहिशें दिल की हैं जो कुछ
जब कभी पूरी न होंगी
तो रेत पर बैठकर भींग जाऊंगा
-Google
आँसुओं की धार जारी हो
इससे पहले तट पर लेट जाऊंगा
संगम के वेग को थामने   
मैं शिला बनकर पहुँच जाऊँगा  
फैसले से ज़िन्दगी में भटकूँ गर
साँस को रोकना सीख जाऊंगा
पसीने से तर होगी हथेली तो
शीतल मुस्कुराहट दे जाऊंगा
चमकते तारे में देख तुम्हे  
प्रकाश जुगनूं का सौप जाऊंगा  
प्रभात “कृष्ण”

6 comments:

  1. बहुत बहुत आभार

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  2. बहुत दिनों बाद आपको देख कर खुशी हुई, आभार

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  3. कितना कुछ है इन लफ़्ज़ों में ……… गहन अत्यंत गहन |

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    1. आपका शुक्रगुजार हूँ, गहनता ढूढ़ लिया आपने।

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    2. आपका शुक्रगुजार हूँ, गहनता ढूढ़ लिया आपने।

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