मैंने कुछ नया नहीं
लिखा । बस सोचा आजकल की घटनाओं का
परिचय आपसे थोड़ा नयें तरीके से कराऊँ ।इन समस्याओं से निजात
पाने के लिए आपमें जिस चीज की कमी हो उसे पूरा कर दूँ । इसी उम्मीद से मैं अपने द्वारा लिखी कुछ पंक्तिया यहाँ आपको तहे दिल
से समर्पित करता हूँ ।
होकर निडर, काम लगन
से फिर वही करना होगा।
बुझते दिए में बाती वही, पर तेल नया भरना होगा।
राग किसी का मत लेना स्वयं सुर नया बना लेना ।
भूली-बिसरी राहों पर ज्ञान के प्रकाश जला लेना ।
होकर आत्मनिर्भर तुम्हें ही सीढ़ी चढ़ना होगा ।
प्रतियोगिता के दौर में नवाचार ही करना होगा ।
लोकतंत्र की नैया पर कितने भी लोग सवार रहे ।
विपरीत दिशाओं वालों की एक ही दुआर रहे ।
सत्य-असत्य का परख तो तुम्हे ही करना होगा ।
लेकर नाव किसी को पहले आगे बढ़ना होगा ।
जिस गाँव में सूनापन हो, आवाज लगा देना ।
अंधेर नगरी में चीत्कार से सभी को जगा देना ।
बन कर मंजिल स्वयं कहीं आना होगा ।
आगे कदम बढ़ाकर पीछे न हटना होगा ।
संस्कृति धरोहर कोई किसी से अनजाने नहीं ।
व्यक्ति की भाषा शैली पर ये सब बंटते नहीं ।
परख - परख कर जवाब हमें देना होगा ।
अन्याय की जीत पर भी न्याय लेना होगा ।
हार से उम्मीद को कहीं पर विचलित न होने दें ।
तृण-भूमि पर भी कोई फसल नया, चाहे होने दें ।
नाम अपना तो जीवन भर महकाना होगा ।
तराश कर पत्थर से ही मूरत बनाना होगा ।
-"प्रभात"
शुक्रिया!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (09-03-2015) को "मेरी कहानी,...आँखों में पानी" { चर्चा अंक-1912 } पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
तहे दिल से आभार!
DeleteThanks Mr. Jitendra!
ReplyDeleteSo nice.
ReplyDeleteThanks Sir
Deleteबहुत सुन्दर और प्रभावी रचना...
ReplyDeleteबेहद प्रभावशाली रचना। उत्कृष्ठ लेखन के लिए बधाई।
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी मुझे प्रेरणा देती है .......इसके लिए आभार!
Delete