फाल्गुन मास और वसंत की सुन्दर बेला
रंगीन नैसर्गिक जीवन के साथ
इस रंगीन त्योहार का सुन्दर मिलन
पुष्प के सुन्दर फूलों के साथ
खिलखिलाकर कुछ कहने की अभिलाषा में
प्रकाशमान नभ की ओर एकटक देखने का हुआ
मानों प्रभात की अनुपम दृश्य के साथ
प्रभात की एकटक निगाहें शरमा गयी
बाल क्रीड़ा करते तबस्सुम की इत्र
मेरे रूह को निस्संदेह खुशबू दे गयी
ब्रज की होली सा सुन्दर अहसास के साथ
साभूषण राधा की पिचकारी से रंगे प्यारे मोहन
मेरे आँगन में किलकारिया ले रहे
मोहन की हास और क्रोध का मिलन हुआ
रंगों से डूबी बाल्टी नन्हे बछड़े को रंग गयी
गऊ परिवार होरी की खुशियों के संग
प्रभाकर की छिति की ओर गंभीरता से
अचरज का अनुपम उदाहरण हमें सौंप गयीं
मानों अब हो रहा दिवाकर का परिहास
विश्राम की मुद्रा में आकाश की बाहों में
रंगी हर तरफ दुनिया की परछाई में
राधा सौप रही सुन्दर गुझिया सा व्यंजन
यूँ तेजहीन प्रकाश की ओट में मोहन
की प्यारी बांसुरी की गूँज और
ब्रज सा विस्तार लिए गाँव के नगाड़े संग
नर और नारियों का मनोहर नृत्य हुआ
होली की इस विशुद्ध सुअवसर में
तसव्वुर की अंतर्मन की उड़ान सभी को
होली पर शुभकामनाएं देने संग चल पड़ा
बहुत सारी प्यार की रस्मों को रंग मिलाता हुआ
-प्रभात
सुन्दर, मनोहारी रचना
ReplyDeleteशुभकामनायें
बहुत बहुत शुक्रिया !
Deleteरंगों के महापर्व होली की
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (07-03-2015) को "भेद-भाव को मेटता होली का त्यौहार" { चर्चा अंक-1910 } पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत-बहुत धन्यवाद ...........साभार!
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