किसी प्रकार की अभिव्यक्ति (फिल्म या डाकुमेंट्री) पर रोक लगाने का मतलब
उसे प्रसिद्ध हो जाना समझ लिया जाये तो बेहतर है यह तो पता है कि ज्यादा दिन तक
कानून के लूपहोल्स की वजह से बैन नहीं लगाया जा सकता. बैन तो आज तक भारत में किसी
की अभिव्यक्ति पर नहीं लग सका है हाँ लगा है वो संस्थागत ऑफिसियली. पर हमें ये भी
मालूम होना चाहिए कि जब इस तरीके के बैन लगते है तो उसे देखने की होड़ लग जाती है.
कुछ भी हो किसे नहीं मालूम कि गांधी के साथ गोडसे को भी इतिहास के पन्ने पर पढ़
लिया जाता है भले ही वह गलत था. बिना गोडसे का
नाम लिए गांधी के हत्या के बारे में पढने की जिज्ञासा कौन कर सकेगा.
अपराधी के विचार अगर सही होते तो वह अपराध ही क्यों करता. वैसे भी फिल्म में केवल सब कुछ ठीक ही हो तो वह कहानी कैसे आगे बढ़ेगी. इस भारत में सच्चाईयां छुपाकर आगे बढ़ने की बजाय उसे धरातल पर लाना उचित होगा. यह भारत इसी के लिए जाना जाता है. जब समस्याएं है तो उसे मात्र इस कि संज्ञा देना की देशहित का सवाल है तो यह कैसा देश जहाँ हम सवालों के घेरे में आने से अपने देश को बचा रहे है. देश की प्रगति तानाशाही रवैये से नहीं हो सकती. पता है "रेपिस्ट मुकेश" के नाम से हमारे मन में बदले की भावना जाग उठती है पर यहाँ अगर हम भी हत्यारा बन जाएँ तो क्या ये सही है? लाखों मुकेश ऐसे भी है जिनको सैलूट किया जा सकता है. रेप एक आम बात बन गयी है इससे इनकार नहीं किया जा सकता हमें अपने बहनों और बेटियों को क्या केवल सुरक्षा देकर और उन्हें परदे से पीछे रखकर हैंडीकैप बना देना चाहिए? मानसिकता बदलनी होगी हम जैसे युवाओं को इसके लिए सबसे पहले आगे आना होगा. सवाल बहुत से है जवाब की तलाश में दिन भर किसी न किसी का ब्लॉग पढ़ लेता हूँ कुछ लोगों के तर्क वितर्क करने की क्षमता का अहसास और आकलन करता हूँ. बस मन में उमड़ रहे भाव कहीं से मेल खा जाते है उसी प्रकार आज के हिन्दू समाचार पत्र का एडिटोरियल पेज पढने को मिला. इस प्रकार यहाँ लिखने का साहस जुटा पाया. काफी संवेदनशील मामला है.
अपराधी के विचार अगर सही होते तो वह अपराध ही क्यों करता. वैसे भी फिल्म में केवल सब कुछ ठीक ही हो तो वह कहानी कैसे आगे बढ़ेगी. इस भारत में सच्चाईयां छुपाकर आगे बढ़ने की बजाय उसे धरातल पर लाना उचित होगा. यह भारत इसी के लिए जाना जाता है. जब समस्याएं है तो उसे मात्र इस कि संज्ञा देना की देशहित का सवाल है तो यह कैसा देश जहाँ हम सवालों के घेरे में आने से अपने देश को बचा रहे है. देश की प्रगति तानाशाही रवैये से नहीं हो सकती. पता है "रेपिस्ट मुकेश" के नाम से हमारे मन में बदले की भावना जाग उठती है पर यहाँ अगर हम भी हत्यारा बन जाएँ तो क्या ये सही है? लाखों मुकेश ऐसे भी है जिनको सैलूट किया जा सकता है. रेप एक आम बात बन गयी है इससे इनकार नहीं किया जा सकता हमें अपने बहनों और बेटियों को क्या केवल सुरक्षा देकर और उन्हें परदे से पीछे रखकर हैंडीकैप बना देना चाहिए? मानसिकता बदलनी होगी हम जैसे युवाओं को इसके लिए सबसे पहले आगे आना होगा. सवाल बहुत से है जवाब की तलाश में दिन भर किसी न किसी का ब्लॉग पढ़ लेता हूँ कुछ लोगों के तर्क वितर्क करने की क्षमता का अहसास और आकलन करता हूँ. बस मन में उमड़ रहे भाव कहीं से मेल खा जाते है उसी प्रकार आज के हिन्दू समाचार पत्र का एडिटोरियल पेज पढने को मिला. इस प्रकार यहाँ लिखने का साहस जुटा पाया. काफी संवेदनशील मामला है.
साभार- प्रभात
इस तरह के प्रतिबंध से और भी चर्चा में बने रहने का नुस्खा मिल जाता है.अतीत में हम सबने हिंदी फिल्मों को इसी तरह सुर्खियाँ बटोरते देखा है.
ReplyDeleteजी ....बिलकुल सही कहा आपने!
Deleteसुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आपको भी होली की हार्दिक शुभकामनाएं....सधन्यवाद!
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