वह एक दृश्य सूर्यास्त का
एकाकी हो देख रहा उन्हें सम्मुख
लगता है सब को वो जा रहा है ।
किन्तु मुझे इससे विपरीत
वह दूसरा क्षिति दिखाई दे रहा है ।
वहां जीवन कैसा होगा?
एक सवाल है ।
वो तो रंगों का सम्मिलन है,
सजीव प्रतिबिम्ब में श्रीन्गारित
परन्तु अतिशयोक्ति नहीं, सचमुच!
पर्वत, नद संगम सब प्रतीत हो रहा है ।
निहारकर हुआ मैं अनुरागी ।
आकाश की थाली में प्रछन्न,
मेघ जो घुमड़ता दिखाई दे रहा है
अब एक वृहत समंदर से घिरा है
मेघ संयोजन शीतल हलचलों के साथ
विशाल पर्वतों के शीर्षोंमुख
श्वेत बर्फ की चादरों में छिपा जा रहा है ।
दूसरा सवाल है ।
वह तो किसी स्वर्ग से कम न होगा ।
अब सूरज, चंदा तारे आँचल में है छितिज के
लुका छिपी में रहस्य कोई जरुर रहा है ।
अब नेत्र भी विवश हो गयी,
ये समां भी बंध कर बिछुड़ रहा,
अचानक काले गगन के सम्मुख
शून्य में दीपोत्सव देखकर
अकेले ही ये मन कुछ कह रहा है ।
केवल मैं ही हूँ?
यह ठहरा सवाल है ।
कितुं नहीं! यह सो जाने की रात है ।
आँगन में अंगड़ाई लेते बाल समूह से लेकर,
माँ और मामा तक बंधा,
संयक्त परिवार साथ दे रहा है ।
चंदा मामा की रट में,
बच्चे की माँ की साथ सम्मोहित
मुसकराहट के वशीभूत होकर,
मेरा विशाल ह्रदय चलने को बाध्य हो रहा है ।
और इन्तजार कर दूसरी संध्या पर
मेरा मन पहले सवाल पर आ रहा है ।
-"प्रभात"
शुक्रिया!
ReplyDeleteआकाश की थाली में प्रछन्न,
ReplyDeleteमेघ जो घुमड़ता दिखाई दे रहा है
अब एक वृहत समंदर से घिरा है
मेघ संयोजन शीतल हलचलों के साथ
विशाल पर्वतों के शीर्षोंमुख
श्वेत बर्फ की चादरों में छिपा जा रहा है ।
प्रभात जी खूबसूरत दृश्य ..सुन्दर भाव ..मन भावन ..
अच्छा लगा यहां आकर जय श्री राधे
भ्रमर ५
तहे दिल से स्वागत है आपका.............शुक्रिया!
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