Thursday 5 March 2015

वही गौरैया याद आती है!

विश्व गौरैया दिवस आने वाले २० मार्च को है  परन्तु मैं आज यह पोस्ट कर रहा हूँ  ये पंक्तियाँ तब लिखा जब मैं पिछले कुछ दिनों के पहले घर गया हुआ था और अचानक मुझे कुछ चिड़ियों की आवाजें सुनायी दी  समय बदलते देर नहीं लगता  बदलते परिवेश में न जाने कितने पक्षी विलुप्तता के इस कगार पर पहुँच चुके है जिनके लिए सरकारी उपाय केवल कागज की फाईलों में सिमट कर रह गए है  मुझे गौरैया की आवाज आज भी सुनायी देती है  लेकिन अपने आने वाली पीढ़ी को गौरैया का फोटो दिखाना ही शायद संभव हो, उन्हें आवाजें क्या फोटो में ढूँढना मुश्किल होगा!
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वही गौरैया याद आती है
जिसके अंडे को
हाथ लगाकर देखा था कभी 
बरामदे के मुक्के* में रोज झांकता
यह बड़ी कब होगी
हम भाई-बहन यही सोंचते
अब तब कौन कब साथ रहा
चंद दिनों बाद सुन्दर सी गौरैया
अपने पंखो के साथ आती है
जिसके बचपन को
खूब पास से निहारा था कभी 
वह साथ में माँ के साथ
होती है
उसकी माँ उसे
उड़ाने का
निरंतर अभ्यास कराती है
माँ के साथ गिरती हुयी नन्ही गौरैया
खेलती है
वही गौरैया याद आती है
जिसको दानें चुगते देखा था कभी 
मानों वह प्यार अब न रहा
गौरैया न रहा
अब केवल सन्नाटे के साथ
एक कागज पर लिखा
मेरा यह भाव सिमट कर
सवाल के रूप में जा पहुंचा
पास बैठी दादी जी के पास
सूरज ढल रहा है
बस चिड़ियों की आवाजें आती हैं
गौरैया के होने का केवल
अहसास करता हूँ अभी 
दादी, ये आवाज किसकी है
धुनियाईन, कीड़े खाने वाली
जवाब सुनकर जिज्ञासा से
एक सवाल और
क्या गौरैया नहीं रहा
नहीं, अब नहीं आती है
जिसको उड़ते हुए
बरामदे में देखा था कभी 

*मुक्के- इसका अभिप्राय बरामदें की दीवाल के ईंटों के बीच के उस जगह से है जो जगह दीवाल के प्लास्टर होने से पहले छूटी रहती है. ये जगह एक ईट की हो सकती है जिसमें बॉस लगा कर उसके ऊपर खड़ा होकर ऊपर के दीवाल के भाग की जुड़ाई करते हैं!
                               
                                                                                                                  -“प्रभात”   

7 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना.गोरैया अब कहाँ दिखती है.कंक्रीट के जंगल में खो गई लगती है.
    नई पोस्ट : मी कांता बाई देशमुख आहे

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  2. आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएँ !

    कल 06 /मार्च/2015 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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    1. आपको भी सपरिवार होली की ढेरों शुभकामनाएं....साभार!

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  3. प्रभात जी। वक्त के साथ बहुत कुछ बदल गया है। सुबह शाम चिड़ियों की चहचाहट जो वर्षों पहले सुनायी देती थी, अब कहाँ!

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    1. हाँ बदल तो गया है ...पर बहुत तेजी से.....शुक्रिया!

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  4. अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको .

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आप यहाँ पहुंचे और प्रोत्साहित किये!

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