ये वेदना असीम भावों की आज कविता बन कर कुरेद
रही है...
मन हुआ व्यथित अब आसमान में उड़ने को करता है
कभी हवा में उड़ने का तो कभी समुद्र में बहने
का करता है
आतंकी करतूते हों या पुलिसिया कुप्रबंधन हो
एक-एक करके सबसे लड़ने का मन करता है
बहुत हुआ कुप्रचार नेताओं का,
ताना बाना बुनने वालों का
लूट रहे जो भी दुनियां को,
सबको लतियाने का मन करता है
चौकी है जो आग लगा दूँ,
चौकीदारों को भगा दूं
हर किसी से लड़ना हो तो मन महाभारत करने का
करता है
दंगों, चीख चीत्कार से कुंठित है अब हर नस नस जय
हिंद
लौट चलूं किसी क्रांतिकारी राह पर मन बदलने
का करता है
जोश, उमंग जज्बे सब मर गए हैं,
एब्यूज ऑफ पावर के आगे
अब तो खूनी होली दीवाली खेलो इनसे ऐसा मन
करता है
-प्रभात
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