जमाने की उलझनों में गीत नए गाए जाएं बसंत को बसंत समझ प्रीत नए लाए जाएं
सेमलों का बाग हो या आम के बौर से नजदीकियाँ हरे/भरे घास के पत्तों से भी धूल हटाए जाएं
मोहब्बतों में आसमां ही हो ऊपर ये जरूरी नहीं जमीन पर हों जो करीब उनपर प्रेम जताए जाएं
-प्रभात
No comments:
Post a Comment
अगर आपको मेरा यह लेख/रचना पसंद आया हो तो कृपया आप यहाँ टिप्पणी स्वरुप अपनी बात हम तक जरुर पहुंचाए. आपके पास कोई सुझाव हो तो उसका भी स्वागत है. आपका सदा आभारी रहूँगा!
No comments:
Post a Comment
अगर आपको मेरा यह लेख/रचना पसंद आया हो तो कृपया आप यहाँ टिप्पणी स्वरुप अपनी बात हम तक जरुर पहुंचाए. आपके पास कोई सुझाव हो तो उसका भी स्वागत है. आपका सदा आभारी रहूँगा!