Thursday, 7 December 2017

यादों के झरोखों से

यादों के झरोखों से...




सुबह हो गयी है। छप्पर तले भागलपुरी चादर ताने नींद से जगा था। हर तरफ चिड़ियों की चहचहाहट और गायों की मी... की जोर जोर से आवाज आ रही थी। पास में आवलें के पेड़ पर बैठा पट्टू भी सुरीली आवाज में कुछ कह रहा था। कोयल की कूक के क्या ही कहने। दादाजी चारा काट रहे थे। मौसम ऐसा था....जैसे शिमला की हल्की कोहरे वाली सुबह...टिप-टिप की बजाय, बहुत हल्की बूंदा बांदी...गन्ने के ढेर आंगन से हटाए जा रहे थे। दादी कह रही थीं कि जाग जाओ भईया...उठो तो आज दीवाली है । का लेवक बा..जाता दिया, चूल्हा, घंटी...खेले वाला सारा सामान लइके कोहार आय हईं।
जल्दी से जागकर बैठे तो देखा हर तरफ घर की सफाई हो रही थी। आज स्कूल भी नहीं जाना था....लिपाई चल रही थी। जमींकंद की खोदाई हो रही थी। आंगन गोबर जी लिपाई से चमक रहा था। तुलसी के पेड़ के आस-पास मनोरम दृश्य लग रहा था। गुलाब की पंखुड़ियां पूरे वातावरण को महँका रही थीं। बछड़ा और पिल्ला सब खेल रहे थे। भौरें और तितलियां मंडरा रही थीं। दादा-दादी कह रहे थे कि पढ़ लो आज कुछ सब याद हो जाएगा। मैं सोचा इससे अच्छा क्या हो सकता है। सामाजिक विज्ञान की कॉपी निकालकर आग्नेय, अवसादी और रूपांतरित शैल सैकड़ों बार पढ़ डाला कि याद हो जाएगा आज तो दीवाली है...हां एक बात है। सबसे कठिन लगने वाला यह विषय मुझे याद हो गया।
अब शाम होने वाली थी। दिन-भर टहल-टहल कर खूब जाता से आटा पीसे और चूल्हा के ऊपर बटुली रखकर खूब पकाया।अच्छी-अच्छी मिट्टी की बनीं प्लेटों का जमकर फायदा उठाया। सुबह से मिठाईया खा-खा कर अघा गया। था। आखिर बच्चा तो और क्या कर सकता था। हां रात को दीपावली को लेकर इतने उत्साहित थे हम कि दिया रख रख कर थक गए थे लेकिन हारे नहीं थे। 200 दिया लिए थी अम्मी लेकिन उसे जिद करके 300 करा दिया था। दादी जी काजल बना रही थीं। और सभी लोग गणेश जी और लक्ष्मी जी की पूजा कर रहे थे। आस- पास के लोगों को मिठाईयां देने गए। अच्छे पकवानों में से मनपसंद मेरा एक पकवान पूरी और कंद की सब्जी खाने जा रहा था। दादा जी और घर के सभी लोग साथ बैठकर हँसी मजाक कर रहे थे। खाना खाते-खाते बोल उठा दादी जी ये बताइए आज राम जी कैसे लौटे थे....अब भी अयोध्या में कोई होगा? अच्छा अमावस की रात क्या है? ये सूप जो पीटा गया था एकादशी में ....ईश्वर आवें दलिद्दर जाएं...ये क्या है? इतने में नींद खुल जाती है....और पता चलता है समय बहुत आगे आ चुका है....आज दीवाली तो है मगर वो जश्न नहीं, आज सब कुछ वही है मगर वो लोग नहीं...सच में सब सपना बन जाता है।

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