Thursday, 7 December 2017

एक सुबह

*एक सुबह*
मैं दिवाली में घर गया और वापसी में जब ट्रेन पकड़ा तो माँ ने काफी गंभीरता से हर बार की तरह कुछ ऐसा ही कहा
कहाँ पहुँचे हो, सीट मिल गई, खाना खा लिया...मेरी कम बात करने की आदत है हां सब ठीक है कहकर, फोन रख दिया।
लेकिन.....शायद वह कुछ कहना चाहती थीं।

सुबह ट्रेन दिल्ली पहुंची मैंने कॉल कर कहा माँ मैं कमरे पर पहुंच गया। माँ ने कहा अच्छा, ठीक और सब बढ़िया है?
हां...मैंने कहा, लेकिन सवाल था और सब बढ़िया है तबियत ठीक है ऐसा पूछने का मतलब...कुछ और पूछना चाह रही थीं...क्योंकि मेरी तबियत गड़बड़ थी तो नहीं

अगले दिन फिर सुबह कॉल आया, सोते हुए 10 बजे मैंने कॉल उठाया और कहा हां अम्मी.....ऐसे ही किया हाल चाल पूछने के लिए, अभी उठ रहे हैं क्या, बहुत देर हो गई... माँ ने कहा।
हां आजकल 4 बजे तो सोता हूँ तो देर तक तो सोऊंगा
और कोई बात है क्या? सब ठीक है न?
हां.... माँ ने कहा
फिर 3 घण्टे बाद 1 बजे दोपहर दुबारा कॉल आया....मैं सोकर उठा था....हां अम्मी बताइए कैसी हैं....बस ऐसे ही किया अभी सो रहे हैं क्या.....माँ ने पूछा
हां अभी थोड़ी देर पहले उठा हूँ। और बताइए....मैंने सहज उत्तर दिया
अच्छा तो अभी तक कुछ खाए भी नहीं होगे?..इसलिए काफी कमजोर होते जा रहे हो....माँ ने कहा
हां अब उठेंगे लेट तो लेट ही खाएंगे...अभी वैसे कुछ खा लिए हैं खाना तैयार हो रहा है बाकी....मैंने कहा।
माँ ने कहा....अच्छा एक बात बताओ दिवाली में आए मैंने देखा काफी उदास से रहते हो, क्या हुआ कोई तकलीफ है क्या? इस बार काफी शांत-शांत से थे....कुछ किसी से बोलते भी नहीं थे...मेरे मन में सवाल उठ रहा था ....रहा नहीं गया मैं सोची पूंछती हूँ आखिर क्या बात है....कुछ हो बात तो बताओ उसको साँझा करोगे तो दूर होगी समस्या....बताओ किस तरीके की शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और पारिवारिक इनमें से कौन सी समस्या है...???
मैं सुनकर दंग रह गया, माँ तुमने मेरी खामोशी को कैसे पढ़ लिया.....मैंने कहां कुछ नहीं वो वैसे ही आपको लगा होगा।कुछ भी तो बात नहीं। मैं ठीक हूँ और ठीक रहूंगा।
माँ ने अधूरे मन से आश्वस्त होकर कहा ...ठीक है खुश रहना चाहिए.....
फोन कट गया, लेकिन मैं पूरे दिन माँ के ख्यालों में डूबा रहा और सोचता रहा...कि मां के लिए जितना लिखा जाए कम ही है...
उन्हें शब्दों में लिखा ही नहीं जा सकता...
माँ और मेरी जिंदगी
तेरे जीने का सहारा हूँ, बचपन से लेकर अब तक दुलारा हूँ माँ
तेरे दिल को जानता हूँ माँ, मेरी खामोशी को पढ़ लेती हो माँ
भीड़ में अगर मैं खो जाऊं तो दिन रात ढूंढ़ती रह जाओगी माँ
अक्सर ढूंढ़ता हूँ तुम्हें किसी और में, तुम मुझे ढूँढ़ लेती हो माँ
इसलिए माँ
मैं हवाओं में बहकर दूर चाहे जहाँ पहुंच जाऊं, तुम्हें शक तो होगा
मैं शून्य से धरा पर या धरा से शून्य तक चला जाऊं, वाकिफ तो होगी
मैं पत्ती बन पतझड़ में मुरझा भर जाऊं तुम्हें दर्द तो होगा
समुंदर में मैं कहीं डूब जाऊं तो गहराई का तुम्हें एहसास तो होग
मेरी खुशी का आधार तू है तो तेरी जिंदगी का आधार तेरा बेटा है माँ
मैं किताब हूँ और मेरे हर पन्ने को पढ़ लेती हो माँ....मेरी आँखों को और चेहरे को पढ़ने वाला तेरे अलावा कोई दूजा रिश्ता नहीं देखा माँ..
-प्रभात


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