-प्रभात का सुप्रभात
उसकी आहट में मैं भरे बाजार में खो गया।
पहली मुलाकात और अंतिम विदाई की यादों में।
इस तरह जैसे उसने दूर से ही छू लिया हो
मैं बेताब होने लगा, सांसे जैसे रुक गयीं हो
तेजी से भागा और उसके आगे रुका
जैसे ही उसने चेहरा घुमाया और फिर
मैं रुका ही नहीं, वह कोई और ही थी.....😂😂
पहली मुलाकात और अंतिम विदाई की यादों में।
इस तरह जैसे उसने दूर से ही छू लिया हो
मैं बेताब होने लगा, सांसे जैसे रुक गयीं हो
तेजी से भागा और उसके आगे रुका
जैसे ही उसने चेहरा घुमाया और फिर
मैं रुका ही नहीं, वह कोई और ही थी.....😂😂
शुभकामनाओं की चाहत में कविमन लिए प्रभात-
आजकल शब्दों से लड़ रहा हूँ, शब्द मिल नहीं
रहे कि मैं अपने मन के भाव को व्यक्त कर सकूं, पिछले 1
घंटे से लिख रहा हूँ, मिटा रहा हूँ और फिर लिख
रहा हूँ, फिर समझ आया...कि न लिख पाऊंगा कभी....लेकिन जिद है
कि इतना तो कह सकता हूँ न कि क्या हो रहा है ऐसा....
इक सागर प्यासा है
इक कहानी अधूरी है
दृश्य बने कुछ ऐसे लगा कि जैसे मेरे भीतर से कोई बहुत खास बहुत दूर चला गया हो, वह जितना पास था अब उतना ही दूर भी। जिंदगी कभी-कभी उसे मेरे पास ले आती है मगर देखता हूँ वह पास है मेरे, बहुत आसपास, घूम-घूम के मेरे अंतर्मन में भी, लेकिन वह अनायास ही परदा डाल कर एक कहानी को मार रही है।
मैं हर बार जब भी पास आती है तो सहम जाता हूँ, आँखे विपरीत हो जाती हैं, ढाँढस के बीज लिए आसपास कोई नहीं दिखता, और इतना सब कुछ देखते ही देखते......एकाएक जैसे मैं ही टूट कर बिखर जाता हूँ.....कुछ भाग जो मुझे सम्पूर्ण बनाता है वह अपूर्ण हो जाता है।....मीन बिन पानी तड़पने लगती है....
पानी की तलाश में फिर से शब्द के पास आने की कोशिश करता हूँ, लेकिन वह फिर कहती है कि आसमान को अभी देखो नहीं उस पर परदा लगा दो, क्योंकि अगर तुम देखोगे तो बरसने लगेगा बेमौसम ही।
उस पर पहरा बिठा दो जो तड़प रहा हो सब कुछ होने के बाद भी.....केवल धर्म संकट की वजह से।
इक कहानी अधूरी है
दृश्य बने कुछ ऐसे लगा कि जैसे मेरे भीतर से कोई बहुत खास बहुत दूर चला गया हो, वह जितना पास था अब उतना ही दूर भी। जिंदगी कभी-कभी उसे मेरे पास ले आती है मगर देखता हूँ वह पास है मेरे, बहुत आसपास, घूम-घूम के मेरे अंतर्मन में भी, लेकिन वह अनायास ही परदा डाल कर एक कहानी को मार रही है।
मैं हर बार जब भी पास आती है तो सहम जाता हूँ, आँखे विपरीत हो जाती हैं, ढाँढस के बीज लिए आसपास कोई नहीं दिखता, और इतना सब कुछ देखते ही देखते......एकाएक जैसे मैं ही टूट कर बिखर जाता हूँ.....कुछ भाग जो मुझे सम्पूर्ण बनाता है वह अपूर्ण हो जाता है।....मीन बिन पानी तड़पने लगती है....
पानी की तलाश में फिर से शब्द के पास आने की कोशिश करता हूँ, लेकिन वह फिर कहती है कि आसमान को अभी देखो नहीं उस पर परदा लगा दो, क्योंकि अगर तुम देखोगे तो बरसने लगेगा बेमौसम ही।
उस पर पहरा बिठा दो जो तड़प रहा हो सब कुछ होने के बाद भी.....केवल धर्म संकट की वजह से।
खैर न समझिएगा, क्योंकि
मैं खुद भी अब कह नहीं पा रहा हूँ कि शब्द क्यों नहीं पद्य के रूप में बंध रहे।
सोचा वही लाइन लिख दूँ। मगर ये जिदवश लिख दिया बस...वैसा नहीं लिख सका जैसा चाहता
था । प्रयास जारी तो है....जल्द ही लिखूंगा शायद....शुभकामनाएं दीजिये।
-प्रभात
-प्रभात
घुन पक्की हो तो कुछ भी असंभव नहीं, सब संभव हो जाता है
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!
बहुत-बहुत शुक्रिया..
Deleteदेरी से ही सही जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteधन्यवाद
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