Thursday, 4 May 2017

प्रेम के शब्द

नहीं पता था कि दिल्ली और लखनऊ की इमारतों में क्या फर्क है। उत्तर प्रदेश का पिछड़ा जिला बस्ती से आया हुआ एक साधारण सा बालक जो जो देखा सब कुछ चाँद, तारे को करीब से देखा हुआ सा प्रतीत होता। सब कुछ असहज था जितना सहज वह था उतना सहज कोई हमउम्र का लड़का मिलना तो दूर की कौड़ी थी। वक्त में जो सुबह अर्थात भोर था वही सुबह उसके नाम से उसकी बातों में दिखता था। हर तरफ से सूर्योदय ही दिखाई देता था। वो कॉलेज का इमारत तो मानों उसने कभी ब्लैक एन्ड वाईट टीवी में देखा था वह भी याद नहीं। कुछ देखा था। लग रहा था कि सब सपने है। उसकी बहुत कोशिश थी कि वह अपने माँ - बाप को सब कुछ दिखा दे। लेकिन दिखाना तो दूर कह कर बताना भी नहीं आता था। अवधी के शब्द तो ठीक से चल नही रहे थे। खड़ी बोली वह सीख रहा था। शांत चित्त होकर जब कॉलेज के क्लासरूम में बैठा हुआ श्यामपट्ट को निहार रहा था। तो ज्यादातर बार निगाहें दूर हो जाती थी। ऐसा इसलिए कि उसने कभी किसी लड़की को देखा ही नही था। और ज्यादातर लडकियां श्यामपट कर सामने से गुजर रही थी। घर के माहौल का उस पर इतना असर था कि नजरें लड़कियों की परछाईं पड़ते ही दूर चली जाती थी। लेकिन उदास चेहरा लेकर सीट पर बैठा ही था कि इतने में लगा कोई पास आ गया। उसने सुना "हाय"। पहली बार लगा कि कुछ मांग रही है। उसने हंस दिया लेकिन गंभीरता से पूछा क्या कहे? बहुत धीरे से कहने के बाद वह इतना डर गया कि उसका माथा पसीने से भीग गया। लड़की ही थी जो उसे देखकर तुरंत पूछा योर नेम। थोड़ी बहुत अंग्रेजी पता था। सो समझ तो गया उसने तपाक से कहा कि "सुबह सन ऑफ डॉ आकाश"। वाउ वेरी नाइस। इतना कहकर वह चली गयी। सुबह ने शायद पहली बार किसी को पास आकर इतना कहते हुए सुना था। वह पलट कर पूछ नही पाया था कि आपका शुभ नाम क्या है? लेकिन क्या करता वह इतना ही तो कर सकता था कि वह दूसरे दिन का इंतजार करता।
दूसरे दिन सुबह ने देखा पूरे क्लास में वह लड़की कहीं पीछे बैठी हुई दिख रही थी। उसने मन ही मन में कहा क्या हुआ लगता है मैंने ढंग से बात नहीं किया या उसका लेवल थोड़ा ऊंचा है जो मुझसे आज कुछ बोली नहीं। कैसे लोग है एक दिन पास आकर बोलते है और दूसरे दिन कोई जानता भी नही। ये सब मन ही मन सोंच रहा था। ये भी सोंच रहा था कि नाम तो पूछ लूं लेकिन हिम्मत न हुई। सुबह के साथ सुबह होने ही वाली नही थी। ऐसा सोचकर फिर वह वापिस होस्टल के कमरे में चला गया। और सोंचता रहा कि उसने आखिर बात तो किया। बात ही तो किया था। अब तक ये भी पता चल गया था कि वह काफी सुंदर नहीं थी, लेकिन सुंदर थी मेरे लिए। उसकी लंबाई काफी नही थी। लेकिन उसकी आवाज में एक जादू था। उसके हाव भाव मेरे से लग रहे थे। पर क्या सचमुच मेरे जैसे? मन मे इतने सवाल लिए सुबह, सुबह होने का इंतजार कर रहा था। नींद नही आ रही थी। लेकिन नींद आना ऐसे समय काफी सहज था। सुबह की सोंच और नींद में प्रत्यक्ष सम्बन्ध था।
#प्रेम के शब्द (आगे जारी है...)
-प्रभात




2 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना..... आभार
    मेरे ब्लॉग की नई रचना पर आपके विचारों का इन्तजार।

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