Thursday, 4 May 2017

प्रेम के शब्द

प्रेम पर न ही बोला जाए कुछ, ऐसा लगता है क्योंकि इसकी तह में जाने पर पता चलता है ये प्रेम का बस आँचल ओढ़े है और अब इस समाज में प्रेम जैसी चीज दरअसल है ही नहीं। बहुत दर्द है प्रेम में। प्रेम में बहुत जलन भी है, चिंता है। करुणा है। चीत्कार है। अगर ये सब है तो इसका मतलब इसमें पड़कर प्रेम के सकारात्मक पक्ष जो शायद आजकल कहने मात्र के लिए मिलते है जैसे खूबसूरती, मुस्कुराहटें, खुशियां, हँसी जैसी चीजों का सुसाइड ही करना है।
लेकिन आप नकारात्मक ही क्यों हो। यही तो देखने को आये है। तो देखिए....सब कुछ सकारात्मक रूपी नदी के किनारे से। जहां काँटों के बीच में गुलाब जैसा फूल प्यार लेकर बैठा हो। जहां कराहते पक्षियों के बीच पपीहे की आवाज हो। जहां मटमैले पानी के वेग के साथ कुछ चमकते बुलबुले प्रकाश से हाथ मिला रहे हो। जहां उलझनों की राह हो मगर बिना किसी सहारे के हर राह पर चलकर केवल एक राह की ओर गुजर जाए जिधर केवल आप और आपकी दुनिया हो। लोग खुद- बखुद आपको ढूंढ़ने की कोशिश करेंगे।

@प्रभात

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