Thursday, 4 May 2017

आहत मन

आहत मन की करूण वेदना प्रखर हुई है जब जब
जागा मैं, आंखे खुली पर छा गयी उदासी तब तब
खो दिया किसी अपने को, जैसे ही कुछ करना चाहा
वीरता का प्रमाण लिए, असमंजता से लड़ना चाहा
नदियां उफनी, बादल गरजा, छाया तिमिर तिहुँ ओर
भावनाओं के वशीभूत है ये, जिंदगी की राह हर ओर
वक्त ने सिखाया है इतना, विपत्ति है आती जब-जब
हौंसलों से पार होती है, अश्रु में डूबी नैया तब-तब

-प्रभात
(तस्वीर: गूगल साभार)

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