एक समय होता है जब आपसे कोई न कोई यह कहते हुए दिख जाता होगा कि
प्यार न करना ।अगर प्यार करना तो कभी ऐसा नही जिसमें तुम या मैं शब्द आये। अगर ऐसा
हो जाये कि कोई कहे प्यार होता ही नही कुछ। इन सारी ही परिस्थितियों में आप खुद से
प्यार करें ऐसा लोग अक्सर कहेंगे। तो करिए आप ऐसा
आप को एक शीर्षक से यह कविता के रूप में "चुटकी भर
प्यार" पूरे प्यार से पढ़ा रहा हूँ .....क्योंकि कोई समझना नही चाहता केवल
समझाना ही चाहता है इसलिए ताकि वह भी एक बार ऐसा सोंचने को मजबूर हो जाये जैसा हर
कोई पागल इंसान सोंचता होगा । जैसा हर कोई अपने अनुभव में प्यार के लिए यही
कहे गए शब्दों का प्रयोग करता है।
*चुटकी भर प्यार*
एक बार सोंचना मां जब नही रह जाती
तो भी छोटी बच्ची देखती है
लाश को उसी ममता की दृष्टि से
जैसे वह पहले देखती थी
तो भी छोटी बच्ची देखती है
लाश को उसी ममता की दृष्टि से
जैसे वह पहले देखती थी
-Google image |
वह बात करती है उनसे
मां कब, क्या पता बोल दें
वह तब तक नहीं दूर जाना चाहती
जब तक उसे बल से हटाया नही जाता
मां कब, क्या पता बोल दें
वह तब तक नहीं दूर जाना चाहती
जब तक उसे बल से हटाया नही जाता
उसके प्यार ने मां की लाश
को भी जिंदा ही समझा है
कुछ भी नही बदलता
को भी जिंदा ही समझा है
कुछ भी नही बदलता
माँ भी यही करती अगर वह
उस छोटी बच्ची की जगह होती
उस छोटी बच्ची की जगह होती
लेकिन तुम या मैं ऐसा नही करते शायद
इसलिए कि मां का प्यार अलग होता है
नहीं?
कदापि नहीं यह कहना ही सही नही
क्योंकि शायद जिंदा भी है हम
इसलिए कि मां का प्यार अलग होता है
नहीं?
कदापि नहीं यह कहना ही सही नही
क्योंकि शायद जिंदा भी है हम
कोई एक मर गया होता
तो संवेदनशीलता दिखती
मेरा प्यार दिखता तुम्हे
और तुम्हारा मुझे..
तो संवेदनशीलता दिखती
मेरा प्यार दिखता तुम्हे
और तुम्हारा मुझे..
अगर ऐसा नहीं हो सकता
तो यही है कि सारी गलतफहमियां
सारी कमियां
मुझमें या तुममें किसी एक में हैं ही
और नाटक ही कुछ ऐसा है
जिसमें तुम्हारी भूमिका में मैं नही
और मेरी तुम नही निभा सकते
तो यही है कि सारी गलतफहमियां
सारी कमियां
मुझमें या तुममें किसी एक में हैं ही
और नाटक ही कुछ ऐसा है
जिसमें तुम्हारी भूमिका में मैं नही
और मेरी तुम नही निभा सकते
और इसलिए ही कहता हूं
कि या तो तुम गलत हो कहीं
या मैं
दोनों ही सही हो?
हो सकता है वक्त का तकाजा हो
कि या तो तुम गलत हो कहीं
या मैं
दोनों ही सही हो?
हो सकता है वक्त का तकाजा हो
वक्त पर छोड़े तो क्या लगता है?
अब मैं कुछ भी करूँ या तुम करो
क्या होगा....लेकिन फिर भी
अब मैं कुछ भी करूँ या तुम करो
क्या होगा....लेकिन फिर भी
मुर्दे की तरह समझ लिया हूँ तुम्हें
मुझे तुम्हारे बोलने का इंतजार रहता है
और तुम्हें भी रहता रहेगा।
मुझे तुम्हारे बोलने का इंतजार रहता है
और तुम्हें भी रहता रहेगा।
लेकिन डर है वैसा ही न हों जाये
जैसा हम दोनों ही नही चाहते।
जैसा हम दोनों ही नही चाहते।
-प्रभात
बहुत खूब....
ReplyDeleteआभार
Deleteविनम्र आभार
ReplyDeleteअद्भुत लेखन
ReplyDeleteShukriya
Deleteमेरा प्यार दिखता तुम्हे
ReplyDeleteऔर तुम्हारा मुझे..
"ख़ामोशी" ही अब तुमसे मुझको अभिव्यक्त करेगी....very nice..
आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभार
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