गुलमोहर सी खिलती हो
गूगल आभार |
तुम कितनी भी दूर चले जाओ
यादों में रहती हो
कितने दिन हो गए बात किये, जैसे अरसा बीत गया हो
सावन आया, बासन्ती आया, अब पतझड़ आ गया हो
माना कि कुछ गलती हुई हमसे, अब माफी मांगे क्या
तुम ही तो समझती हो
खामोश हूँ मैं तो तुम क्यों होती हो
तुम धूप में झूमती हो
गुलमोहर सी खिलती हो.....
सावन आया, बासन्ती आया, अब पतझड़ आ गया हो
माना कि कुछ गलती हुई हमसे, अब माफी मांगे क्या
तुम ही तो समझती हो
खामोश हूँ मैं तो तुम क्यों होती हो
तुम धूप में झूमती हो
गुलमोहर सी खिलती हो.....
है बहुत मुश्किल खुद को मनाना, खुद
के हिसाब से
तुम्हीं मना लो मुझे, शायद कोई शिकायत न हो हमसे
तकलीफ बहुत है हमसे, प्यार इसे ही कहें क्या
रातों को दिन समझती हो
राह तकता मैं हूँ तो तुम भी तो हो
तुम मेरी मुस्कुराहट हो
गुलमोहर सी खिलती हो.....
तुम्हीं मना लो मुझे, शायद कोई शिकायत न हो हमसे
तकलीफ बहुत है हमसे, प्यार इसे ही कहें क्या
रातों को दिन समझती हो
राह तकता मैं हूँ तो तुम भी तो हो
तुम मेरी मुस्कुराहट हो
गुलमोहर सी खिलती हो.....
एक उम्मीद लिए लिखता हूँ तुम्हें, हासिल
हो या न हो
जो भी कहता हूं, तुम पढोगे नहीं, शायद जरूरी न हो
इक राज छुपा है तुमसे, न चाहकर तुम चाहोगी क्या
तुम सपनों में आती हो
हर वक्त शाया बनकर रहती है
तुम मेरी जिंदगी हो
गुलमोहर सी खिलती हो.....
जो भी कहता हूं, तुम पढोगे नहीं, शायद जरूरी न हो
इक राज छुपा है तुमसे, न चाहकर तुम चाहोगी क्या
तुम सपनों में आती हो
हर वक्त शाया बनकर रहती है
तुम मेरी जिंदगी हो
गुलमोहर सी खिलती हो.....
एक खामोश दिल की हलचल ....बहुत कुछ कह गई ..
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteसुन्दर प्रेमभावों से सजी उम्दा रचना !!
ReplyDeleteहृदय से आपका शुक्रिया।
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