ईश्वर भी कितना अजीब है कितने निस्वार्थ भाव से कभी कभी इस पृथ्वी पर कुछ ऐसे मनुष्यों को छोड़ जाता है जिनमें कुछ की जिन्दगी केवल कुछ ही समय के लिए होती है, कुछ को जिन्दगी भर मौत से लड़ते रहना होता है, कुछ को दास बनकर रहना पड़ता है, कुछ को हमेशा दुःख ही भोगना होता है....ये जिन्दगी भी कैसा भेदभाव करती है कि जिन्दगी के कुछ सुख सुखीवान व्यक्ति से बंट नहीं पाते..अभी तक न जाने कितनी कहानिया सुनी है कि यहाँ राम, भीष्म, अर्जुन, कुंती, कर्ण, श्रवण और न जाने कितने लोग ऐसे आये थे जिन्होंने केवल त्याग ही किया है वास्तव में ऐसा त्याग अगर बांटा जा सकता तो......
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कभी फूल मिलते है कभी पत्थर जिन्दगी तरसती है
ख्वाब एक बनकर
कभी उड़ान या कभी गहराई बनकर, चला देती हैं नया
परिणाम बनकर
क्या सोंचा था क्या हो जाता है पाने के लिए सब
खोता हूँ लुट-लुटकर
गवाँना है सब कुछ जब इस जिन्दगी में तो प्रेम
भी कैसे समझ लूँ न लेकर
देखूं प्रतिज्ञा में भीष्म पल रहे थे और श्रवण पितृ भक्ति की कहानी ढोकर
चाँद जहाँ है और प्यारी चांदनी वहां मैं बेसुध-निर्जीव
पड़ा हूँ युग युगोत्तर
कभी राह मिलते है बेसहारे कही पर ढूंढता है उन्हें
प्रभु नया जीवन देकर
कभी कैसे सहारा एक मिले, मंजिल भी दूर हो जाती
है ठुकरा-ठुकरा कर
-प्रभात
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-01-2016) को "विवेकानन्द का चिंतन" (चर्चा अंक-2217) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
नववर्ष 2016 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार!
Deleteबहुत-बहुत शुक्रिया
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