कुछ न चाहत, फिर भी लिखा हूँ प्यार के बंधन
में बंधकर
गीतों के सुर-साज न बदले, फिर भी लिखकर गाने
लगा हूँ
आज कहीं से याद है आयी, पुरानी भूली सी उन
बातों पर
चेहरे अब कुछ कह रहे, याद कर उन छोटे कई
लम्हों पर
लो पूछ ही लो तुम भी, भोली सी आज सूरत मेरी
देखकर
आज तक मैंने रूप न बदले, फिर भी प्यार में
बदलने लगा हूँ
कितने अरमान से तुम्हें मैंने चुना था, तेरी
मोहक सी बातों पर
मोह में कोई कैसे बदले, ये खुद की आत्मा से
पूछने लगा हूँ
न कोई मेरी तकदीर बदली है न मौसम के मिजाज हैं बदले
आज पुरानी बात न संभले, फिर भी उसी को दुहराने
लगा हूँ
कुछ अंदाज था तुम्हारा जो, नाम बस तुम्हारे
प्यार का हुआ
सच पूछो तुम नही बदले, फिर भी रश्में अपनी निभाने
लगा हूँ
जैसे तुम आये थे हवा बनकर, उड़ कर चले गए दूर कहीं
पर
रिश्ते कैसे बने थे, आज भी जानना चाहता हूँ
इतना रुक कर
कोई परिभाषा मैंने अगर गढ़ी, बदला था मैं सब तुम्हारा
होकर
तुम न बदले, न मेरी परिभाषा, फिर भी सब ये बताने लगा हूँ
-प्रभात
जय माँ अम्बे।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-10-2015) को "देवी पूजा की शुरुआत" (चर्चा अंक - 2132) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत - बहुत आभार !
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