किसी की परवाह करूँ तो मुसीबत बढ़ सी जाती है
कोई मेरी परवाह करे तो बेचैनियाँ बढ़ सी जाती
है
सोचूं अलग तो कैसे जिन्दगी उदास जो हो जाती है
अभी तक सपनों में डूबा खुद को अंदाज रहा था
कभी उड़कर हंस रहा था तो कभी गिरे रो रहा था
पता चला मुझे हकीकत का, उस वक्त नही मगर
जब आँख खुली भी तो फिर सपनों में लौट रहा था
-प्रभात
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 23 अक्टूबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुंदर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : बीते न रैन
बढ़िया प्रस्तुति!
ReplyDeleteविजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें!
शुक्रिया
Deleteबहुत ख़ूब
ReplyDeletehttp://savanxxx.blogspot.in
आपकी इस रचना को कविता मंच पर साँझा किया गया है
ReplyDeleteकविता मंच