Wednesday, 7 May 2014

पसीने से डर नहीं लगता।

      खेतों में काम करते हुए
ढेलों के बीच पानी की
बूंदों के लिए,
तरसते हुए,
मैली देह पर खुजलाते हुए,
मिट्टी की डिहरी में घुन के साथ
        अन्न खाते हुए,
   पसीने से डर नहीं लगता।





घर आकर खाना बनाते हुए
आठ से दस लोगों को
पहले खिलाकर
फिर बर्तन मांजते हुए,
बची सूखी रोटियों में
चटनी लगाते हुए,
                             कुएं का पानी पीते हुए,
                          पसीने से डर नहीं लगता।





टीवी देखने वालों से सुनते हुए
मनोरंजन के लिये,
कूलर की जगह ए.सी. का
फायदा लेते हुए,
उन तमाम नारियों को
       छाते की आड़ में
   छिपे देखते हुए धूप में, मुझे
     पसीने से डर नहीं लगता।
                          -प्रभात

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