खेतों
में काम करते हुए
ढेलों
के बीच पानी की
बूंदों के लिए,
तरसते हुए,
बूंदों के लिए,
तरसते हुए,
मैली
देह पर खुजलाते हुए,
मिट्टी
की डिहरी में घुन के साथ
अन्न
खाते हुए,
पसीने
से डर नहीं लगता।
आठ
से दस लोगों को
पहले
खिलाकर
फिर
बर्तन मांजते हुए,
बची
सूखी रोटियों में
चटनी लगाते हुए,
चटनी लगाते हुए,
कुएं
का पानी पीते हुए,
पसीने
से डर नहीं लगता।
मनोरंजन
के लिये,
कूलर
की जगह ए.सी. का
फायदा
लेते हुए,
उन
तमाम नारियों को
छाते
की आड़ में
छिपे
देखते हुए धूप में, मुझे
पसीने
से डर नहीं लगता।
-प्रभात
Bahut Umda....
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद।
ReplyDelete