है बस ये शुरुआत अभी और कोशिशे करनी
होगी
जनतंत्र की बुनियाद में आजादी थोडी
बदली होगी
गरीबी को दूर कर नयी रोशनी देनी होगी
गुंडों और चोरों की नस-नस अभी पकड़नी
होगी.
उद्योगों से घिरे नदियों की धाराएं
अभी मैली होगी
पर इस मैली की परिभाषा विज्ञान से
बदलनी होगी
प्रकाश से अंधेरों की परछाई साथ पकड़नी
होगी
जनजीवन खुशहाल बनाने की प्रयास पूरी
करनी होगी.
जातिवाद से ही यहाँ घर की रोटी सिकती
होगी
मानवता की आड़ में अँधकार जो दिखती
होगी
वंशवाद की वर्दी चौराहों पर जरूर सजती
होगी
ऐसे दीवारों को वोट के ईटों से ही
तोड़नी होगी .
-प्रभात
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