Thursday, 1 May 2014

विचारों की दिशा..............(2)

     बहुत सही वक्त था जब मैं शाम को घूमने निकला था, दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस में अच्छा समय बीता। अकेला था परन्तु अकेला घुमने का आनंद ही कुछ और होता है खासकर मेरे लिये। अच्छा मौसम था. गर्मी तो बहुत थी इसलिए अब तक प्यास भी लग गयी थी मैं पानी पीने के लिये लॉ -फैकल्टी गया। संगीत की धुन कहीं से आ रही थी। आवाज तो वहीँ पास से आ रही थी मैंने सोचा कुछ समय यहाँ बिताते है. जाकर कुर्सी पर बैठ गया और सूफी संगीत का आनंद लेने लगा. मैं बैठा ही बैठा संगीत की महफ़िल में रम तो गया और साथ ही साथ वहॉँ के पर्यावरण ने मुझे ताजगी से भर दिया।

        विचारों की दिशा का यह दूसरा लेख है. मैं सोच रहा था की यह जो समय था संगीत का. इसने मेरे विचारों को किस प्रकार प्रभावित किया। संगीत से उत्पन्न ताजगी ने मानों मेरे दिन को सही रूप में कुछ नयी ऊर्जा भर दिया था. यह सच है कि हर किसी से मिलने और हर किसी जगह पर जाने का कुछ फायदा जरूर होता हैं लेकिन जब जगह और लोग अच्छे हो. हम अपने दिनों को अच्छा बना सकते है कहीं न कहीं जाकर चाहे वह सुन्दर सी धार्मिक जगह हो या घूमने वाली जगह.  

       किसी बात को लिखने या कहने का कुछ ना कुछ आशय होता  है और यह आशय हर कोई नहीं बताता। कुछ बातों को कुछ जगह पर लिखने के पीछे की कहानी आप अगर बता दें तो शायद सुनने या देखने वाले को वह बात अच्छे से समझ आती हैं मुझे ध्यान आता हैं कभी-कभी हम किसी से कोई बात करते हैं तो वह हमारी बातों का उस मुद्दे से हटकर नया अनुमान लगा कर सामने प्रकट करता है इसका बहुत बुरा असर आगे की कुछ घटनाओं के घटित होने में दिखती है. इसलिए हम सबको पहले यह श्रृंखलाबद्ध तरीके से होने वाली घटनाओं को रोकने के लिये अपने विचारों की दिशा की तरफ पहल करने की जरुरत है. हम सामने वाले की बातों के कहने का आशय अगर न समझ पाये तो हमें उसे ढूंढनें का प्रयत्न करना चाहिए तभी हमें आगे उस बात के बारे में प्रतिक्रिया देने का साहस करना चाहिए।

      मैनें अपने आगे की लाईनों को क्रमबद्ध करने के लिए अपने संगीत वाले पंक्तियों को पहला स्थान दिया है. शाम को घूम कर वापस आ रहा तो कुछ बातें ध्यान आ रही थी कि हम जो कहते हैँ या मेरे कुछ लिखने कि बजाय अगर इसे सुन्दर स्वर में समाहित कर नये नये धुन दे दिये जाएं तो ऐसा लगेगा कि कुछ नयी बात बात मैने लिख डाली। परन्तु मुझे पता हैं यहाँ अंतर इतना हैं कि कुछ लोगों को इन बातों को ग्रहण करने में आसानी हुई राग में बदलने की वजह से. यह सच हैं कि आप अगर कुछ पढ़ते हैं तो उस बारे में धारणा जो बनती हैँ वह इन सभी बातों के ऊपर निर्भर करती है जिसकी मैँ चर्चा कर रहा हूँ.

      किसी कविता या गजल को लिखने के पीछे एक कहानी जरूर होती है जरुरी नहीं कि वो सच्ची हो या कल्पित। मैं अगर कल्पना करता हूँ तो भी किसी न किसी सच्ची बात का अनुसरण जरूर करता हूँ. ऐसा जरूरी भी होता हैँ. वह गजल लिखना आसान होता जिसमें मैं एक पात्र होता हूँ और मेरी कहानी होती हैं परन्तु अगर उस गजल को लिखना हो जिसमें सब कुछ बदल गया हो, कहानी किसी और की हो, वह पुरुष न होकर स्त्री हो. इस स्थिति में बस कल्पना करने की जरुरत होती है भाव बिल्कुल सामने प्रकट हो जाते हैं.


        मैं अचानक ही उस दिन आकर अपने द्वारा लिखी एक पत्र को पढ़ रह था. यह पत्र लिखे २ ही वर्ष हुए होंगे। मैं पढ़ रहा था और हसते जा रहा था क्योंकि इस समय मेरे विचार नयी दिशा में प्रवेश कर गये थे. पल-पल मेरे विचार बदलते जाते हैं और प्रासंगिकता और अप्रासंगिकता का सवाल जरूर उठा देते हैं। हम जो लिखते हैं वह कोई जरूरी नहीं कि सही मन की बात ही लिखते हैं क्योंकि कलम तो उस समय बस अपने हीं हाथ में थी. यह लिखने और कहने में अंतर को भलीभांति स्पष्ट कर देता हैं क्योंकि जो हम कहते हैं वह एक बार कह देने पर वापस नहीं आ सकती। परन्तु लिखने के समय जब तक वह कलम के साथ मेरे पास रहती हैं हम उसमें बदलाव कर लेते हैं. मैं उस पत्र को लिखा था मात्र २ घंटे में और वह पत्र मेरे साथ जब तक थी उसमें बदलाव करता रहा क्योंकि समय बदलता रहा. अब तो वह पत्र मेरे हाथ से किसी को प्राप्त हो चुकी थी. मैं बदलाव अपने पास रखे एक प्रति में करके कर कर भी क्या सकता हूँ जब प्राप्तकर्ता के पास पहुंची बात अब के मेरे विचार से बिल्कुल मेल नहीं खाती।

        इन्ही विचारों में खोकर मैने कुछ ऎसी लाईनें लिखी जो आपसे साझा कर रहा हूँ जहाँ कल्पना का सहारा जरूर लिया हूँ परन्तु वास्तविकता कहीं न कहीं मेरे विचार में गूंजती रहती हैं.


विरहणी की दास्तान

मुलाकात होगी अगर हमारी
बताऊंगा तुमको अब तक की कहानी।

बीतें हैं दिन जितने सपने हैं उतने
गले लग जाना पहले बातों से अपने
मुस्कराहट में होगी शुरु बातें हमारी
मुलाकात होगी अगर हमारी।

इंतजार करते-करते बीते हैं दिन जितने
नदियों में देखे नहीं सूरज की किरणें
नयनों से होगी पूरी किस्सा हमारी
मुलाकात होगी अगर हमारी।

उपासक हूँ तबसे जब देखा था हमनें
आएंगे मुसर्रत के दिन ख्वाबों में सजने
चेहरों पर होगीं खुशियां हमारी
मुलाकात होगी अगर हमारी।

        आपके पास "विचारों की दिशा" पर कुछ टिप्पणियाँ या सुझाव हो तो पूरे मन से जरूर साझा करें। आपका दिल से आभारी रहूँगा। 

      

8 comments:

  1. प्रभावी विचार ...सुन्दर पंक्तियाँ

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका तहे दिल से धन्यवाद .... आगे भी प्रेरणादायक टिप्पणी और सुझाव के लिये आपका स्वागत है.....

      Delete
  2. विचारों के साथ साथ लयबद्ध कविता पढ़वाने के लिए दिल से आभार

    ReplyDelete
  3. दिल से आपको धन्यवाद....... आपसे यहॉँ मिलकर आपकी रचना "क्षितिजा" तक सफ़र करने का आनंद मिला। विनम्र आभार!

    ReplyDelete
  4. Sir as a vichaarak itni achchi vichaar h aapke

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति बहुत प्रभावशाली रचना..

    ReplyDelete
    Replies
    1. तहे दिल से शुक्रिया व बहुत आभार आप यहाँ तक आये!

      Delete

अगर आपको मेरा यह लेख/रचना पसंद आया हो तो कृपया आप यहाँ टिप्पणी स्वरुप अपनी बात हम तक जरुर पहुंचाए. आपके पास कोई सुझाव हो तो उसका भी स्वागत है. आपका सदा आभारी रहूँगा!