अब कर
चुका बहुत इंतजार
अबकी बार किसकी सरकार?
भीड़ में
बहुत पोल बिक रहे
३ दिन
सब्र कैसे करें जब
टी वी के नहीं बिल बढ़ रहे
समय किताबों से कट नहीं रहे
हम जुआरी बन रहे
रहस्य का पर्दा चौराहो पे ही खुल रहे
इस बार कुछ ज्यादा मजेदार?
कुछ नेता
कहला रहे
कुछ पी.
एम. पहले बन बैठे
कुछ की वर्दी टाईट है
कुछ की साईकिल अब बाइक है
कुछ जानवर तो कुछ मानव है
कुछ का राजनीति से न कोई सरोकार?
ये कैसा
जनतंत्र है
लोकतंत्र
या मीडिया तंत्र है
अमीरी है या धन की डिहरी है
अम्मा की पूँजी अब बेचनी है
दानव का कभी सिंहासन हो
पलट जाएगी बाजी अपनी जब
किस्सों से बन जाती सरकार?
गरीबी हो
या हो बदहाली
घर की
दाल नहीं अब गलने वाली
५ साल में पूजा करनी होगी
तकिये से नीचे उतरनी होगी
त्योहारों का मेला लगता है जब
ऐसा होता है फिर क्यों इंतजार?
अन्याय
बहुत है समाज का
बदहाली
के फायदा का
केवल
वोटों से ही रिश्ता का
कुम्भ मेले से रिश्ता का
धार्मिक जीवन के अनुयायी हैं
हमीं है केवल भगवन के अवतार?
मूल्य ऊल्य अब अमूल नहीं
बातों की कोई साँच नहीं
रिश्तों की कोई बुनियाद नहीं
अब मान
लिया हमने अगर
वोट दिया
पर न माने वो अगर
हो रहा
परेशान बाकी से नहीं अगर
तो क्यों मुझसे होती है तकरार?
मान नहीं सम्मान नहीं
उस पर्दा का कोई यार नहीं
फेक देंगे ओढेंगे कटी चुनरिया
बातों के
रिश्ते का
बेवकूफी
के किस्से का
हकीकत
नहीं फिर किस गुस्से का
सियासी चालों के हो जाते क्यों शिकार?
मेहनत की रोटी क्यों खानी
पीये घर के नल का क्यों पानी
मंज़िल
सबकी थी एक ही वही
भ्रष्टाचार
की खुल जाती बही
मकान हो
या हो दुकान
पैसो से मिल जाती क्यों राह?
इतिहास
अभी तक रहा है ऐसा
जीतेगी
जनता नहीं बस पैसा
खुलती
राह मिल जाती है जब
करें देर क्यों हम हर बार?
लगता है
किस्मत था नहीं यहाँ कुछ
थाह नहीं
था जाति के चक्कर का कुछ
बंधे हुए
है जब जातिवाद में सब
कितनों की ऐसे आएगी सरकार?
नेता जी
के रिश्तों तक कुछ
प्यार
नहीं बस परिवार है
यहाँ फिर
कैसा सरकार है
समय ही होती क्यों फैसलेदार?
संप्रदाय
का बीज लगा है
कहीं
रक्त का रोग लगा है
मानवता
का प्रकोप नहीं
इंसान को
कभी सुकून नहीं
फिर मंदिर से होता है परोपकार?
उड़ान हवा
में लगती नहीं
फैसले से
वो डरते नहीं
करते है
मुलाकात से जो शुरुआत
मिलकर
बातें करते है
राहों
में साथ ही चलते हैं
फिर उन पर बातों की होती है वार?
कभी
बोलना आता है
कभी
मम्मी तो कभी पापा है
रिश्तों
में दरार नहीं
फिर भी
हम पर विश्वास नहीं
कुछ दिन
चले जाते है
वोटों
में घुस जाते है
जनता के
बीच संवाद नहीं
कैसे हो जाता है करार ?
सोने के
दिए जलाते है
मिटटी से
नहीं पूजे जाते है
फूलों के
गहनों में सजते हैं
बस तूफ़ान
खड़ा जब करते हैं
लड़ जाते
है मायिक लेकर
आयोग से
कभी भिड़ने वाले
करते हैं कुर्सी का इंतज़ार?
कर रहा
हूँ अब भी इन्तजार
ख़त्म करो
खेल आ जाओ पास
मिल कर
देश बचाएंगे
सीने पे
चढ़ जायेंगे
हकीकत से
मिल जायेंगे
बाटेंगे
देश अगर
कर देना बन्दूक से वार?
बढ़िया है ..... देश सबसे पहले हो....
ReplyDeleteबहुत आभार!
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