Sunday, 11 May 2014

विचारों की दिशा……………..(3)

बुद्धि की स्मृति में!

   पशु प्रेम तो हममे से हर किसी को होता है यह बात अलग है कि वह पशु कौन है. जब आज मैनें समाचार सुना कि अमूल दूध के दाम में २ रूपये की बढ़ोत्तरी हुई तब मुझे विचार आया क़ि अपने इस लेख में मैं बुद्धि के बारे में जरुर प्रकाश डालूँ।                                    
   वह जब मेरे घर आयी थी वह दिन बुद्धवार का था काली रंगों में रँगी वह तो माँ से दूर जाकर बैठी थी मुझे फोन पर जब पता चला तो सुनकर अच्छा लगा कि उसका नाम बुद्धि सही ही रखा गया है. वह अन्य गायों से अपनी अलग पहचान बना रखी थी जब उसके पास मेरी माँ जाती थी तो मारने दौडती थी और जब मैं तब बड़े आराम से अपने पास बुलाती थी वह अक्सर ऐसे लिंग अन्तर के साथ आवभगत करती थी. पिछले दिनों जब मैंने सुना कि उसने एक बछडा दिया है तो बहुत अच्छा लगा कि दूध की व्यवस्था परिवार में हो गयी अब घर जाऊंगा तो जरुर खिजरा (दूसरे दिन का फटा दूध) खाने को मिलेगा.
   घर जाने के लिये अपने कमरे से निकलने ही वाला था. अभी रेलवे स्टेशन पहुंचा नहीं था की सन्देश मिला कि बुद्धि एक बीमारी की वजह से दोपहर में संसार से अलविदा कह गयी! सवाल दूध का ही नहीं था उसके प्रेम का था उसकी यादों के साथ जुड़ी वह कहानी थी जिसने मेरे आँखों को आंसुओ से नम करने में देरी न लगायी अब निराशा भीं थी कि ४ दिन का छोटा बछड़ा कैसे जीयेगा, उसके साथ अब कौन खेलेगा? ऐसे कई सवाल दिमाग में चल रहे थे.
   घर पहुँचकर जब उस बछड़े से मिलने गया तो मेरे सारे सवाल उसके बचपन के हाव-भाव में छिपकर भी कुछ हद तक मेल खाते दिख रहे थे यही सारे सवाल उसने अपनी इशारों और चार दिनों के हरकतों से मुझसे पूछ लिया और मैं मूक बना रह बस उसके कभी पैर सहलाता कभी कोमल गालों को छूता और कभी परजीवी ताकतों से रक्षा के लिये अम्मी के साथ मिलकर नहलवाता रहता। परन्तु हर तरफ बछड़ा अपनी "अम्मा" को खोजने के लिए भागता रहता उसके साथ बुद्धि ने २ -३ दिन ही बिताये थे परन्तु वह २-३ दिन उसकी यादों के लिए काफी था वह हर जगह ढूंढता जहाँ भी वह अपने  अम्मा के साथ रहा।
   आप तक उसकी बात पहुँचाने के लिये मैंने कुछ लाइनों का सहारा लिया हैं शायद इसमें भी सम्पूर्णता ना हो परन्तु उसके लिये यह एक छोटा प्रयास है -

माँ  मेरे प्रेम की खातिर पीड़ा बहुत उठायी हो, अब मुझे पाकर तुम्हे रोना नहीं पड़ेगा

(जब माँ के गर्भ से बाहर आता है उस पल के बारे में)

तेरे हर कष्ट में सदा साथ निभाउंगा
तेरे भौहों के संकेतों का पालन जरूर करुँगा
तुम चारा ख़ाना मैँ हरी भरी घास भी नहीं छूऊँगा
ध्यान रखना बस जब माँ एक बार मेरी आवाज सुनो
बस दूध पिलाना बिन पूछें की पास में क्यों आये हो.
(अपने आपको त्याग की भावना से परिचय कराते हुए)

जब तुम पागुल करोगी तेरे निकट मैं आ जाऊँगा
तेरे मोह की खातिर मैं गोदी में ही सो जाउँगा
सिखा देना स्नेह से अपने सारे काम
इसी स्नेह की खातिर माँ एक बार मेरी आवाज सुनो
बस दूध पिलाना बिन पूछें की पास में क्यों आये हो.
(अपनी शरण में रखने की बात)

मत घबराओ माँ मैं तेरे पास ही आऊंगा
एक बार दूर जाकर भी तुरन्त वापस आ जाऊंगा
पग मेरा बढ़ेगा माँ पाकर तेरा साथ
घुन-घुन की आहट में माँ एक बार मेरी आवाज सुनो
बस दूध पिलाना बिन पूछें की पास में क्यों आये हो.
(माँ को चिंता ना करने की सलाह)

लगता है माँ तुम मुझसे हो नाराज
ऐसा है माँ तो लो मै नाराज नहीं अब होंने दूंगा
चारा खाना तुम मैं घास भी नहीं छूऊँगा
बचकानी आवाज में माँ जब एक बार मेरी आवाज सुनो
बस दूध पिलाना बिन पूछें की पास में क्यों आये हो.
(अपने आपको दोषी ठहराते हुए)

लगता  है माँ दो दिन हुए अब दूर कहीं तुम चली गयी
सोयी थी कल पुआल के पास कैसे तुम छोड़ गयी
दूध पीना बंद है मैं नेपुल से भी नहीं पी पाउँगा
इसी धूप में पुआल पर मां एक बार मेरी आवाज सुनो
बस दूध पिलाना बिन पूछें की पास में क्यों आये हो.
(अब ना पाकर हमारे द्वारा ढूध पिलाये जानें के ढंग को अनावश्यक समझते हुए)


अनजान यहाँ है दुनिया कब तक ऐसे देखूंगा
अब मैं इस अनजान सी राहों में ऐसे क्यों दौड़ूंगा
आओगी माँ मुझे पता हैं ऐसे मैँ नहीँ जी पाउँगा
ऐसे ममता की यादों में माँ एक बार मेरी आवाज सुनो
बस दूध पिलाना बिन पूछें की पास में क्यों आये हो.
(न पाकर भी एक आशा दिलाते हुए)
   यह सच हैं कि अपनी माँ की यादों में और इस प्रकार की व्यथा में वह बछड़ा भी कुछ दिनों बाद चल बसा! यह अलग बात है उसे भी किसी बीमारी से ग्रसित समझ कर उसका एक अलग कारण बताएँ।
   मेरे इन सब बातों को पहुँचाने का एक आशय यह है कि आप तक समय की प्रासंगिकता की याद दिलाते हुए मैं बुद्धि जैसे खासकर गाय परिवार की समस्याओं की ओर आपका ध्यान आकृष्ट कराऊं।
   इसमें कोइ संदेह नही है. मनुष्य ने शब्दों का चयन अपने लाभ के लिये किया है. अब देखिये न, नंदी बैल को शिव जी की सवारी बनाया और इसका प्रयोग हम गांवों-गावों में खेत के अन्न भंडार क़ी सुविधा से लेकर देश की अर्थव्यवस्था के हर एक पहुलओं में करते थे. बैलों के प्रयोग की वजह से भारत की एक पहचान थी. 
   परन्तु अगर आज हमारे विचार सही दिशा में हैं तो आज कुछ कड़वे सच क्यों सामने हैं जिसे आप भली-भांति जानते है कि आज इन सारे बैलों का प्रयोग केवल भक्षण तक सीमित रह गया हैं क्योंकि हमारी मानव जाति ने समय के हिसाब से इनका प्रयोग आदिमानव के युग की तरह करना सीख लिया है हम आदर्शों और परम्पराओं की बात करते है यहाँ तक की राजनीतिक मंच पर भी परंतु सियासी रंग देने के लिये। हम दूसरों को याद दिलाते हैं केवल अपने लाभ के लिये।  हम देश के हित को अपने हित से समझौता करने में नहीं चूकते। आज हर एक घर परिवार अपने बछड़े को खेत में खुला छोड़ आता हैं. चरनें के लिये नही, केवल उसे भगाने के उद्देश्य से। वह चाहे कितना सुन्दर बैल क्यों ना बने ,परन्तु उसे केवल अन्तिम सजा देने वाले ही उसे देखने आते हैं.
   हमें अपने मानसिकता को बदलनें की आवश्यकता हैं ना की अपने विचारों की दिशा को. हमारे विचार तो अपने आप सही दिशा में समय के हिसाब से बदलते रहेंगे। क्यों ना अपने आप को देश के रक्षक कहने वाले सांसद इस दिशा में कोई विकल्प ढूँढ़ते।
   आज हम बड़े प्रेम से गाय को गऊ माता कहते हैं बुद्धिजीवी इनकी पूजा भी करते है पर कभी-कभार त्योहारों के समय तक ही सीमित क्यों रखा जाता है. सड़क पर खड़ी माता को २ रोटी देने चल देते हैं क्योंकि इनका हृदय ऐसा करनें के लिये प्रेरित करता है. मैं जब कूड़ा डालने सड़क पर जाता हूँ तो इन माताओं के झुन्ड मेरे पास दो रोटी खाने के लिये आते हैं. उनके आखों में सौन्दर्य नही बल्कि आसूँ झलकते है. यह भी सुंदरता ही हुई न? वो असहाय जीव मुझे आते देख मेरी ओर, फिर बाल्टी में बड़े प्रेम से देखते हैं और जब जान जाते है यहाँ खाने कि लिये कुछ नहीं है तो वे बड़े प्रेम से पीछे हट जाते हैं. कभी-कभी ये झिल्ली चबा जाते हैं और पेट में लिये घूमते हैं ये दिल्ली जैसे शहर में तो आम बात है, जो दिल्ली भारत की पहचान हैं. मुझे हर बार यहाँ से गुजरने पर दर्द होता है, आप जैसे कुछ लोगों को भी होता ही होगा कि न जानें ये गलती से ब्लेड और ऐसे कितने वस्तुओं का प्रयोग अपने पेट के लिये करते रहते हैं और अंततः सकून की नींद में सो जाते हैं. सच भी है हर कोई इन बातों से अवगत हैं, परन्तु अमूल दूध पीते वक्त इनके बारे में जरा भी नहीं सोचते।
   सबसे बड़ा सवाल हैं? बड़े प्रेम से कहते हैं की दूध सम्पूर्ण आहार है और दूध प्रतिदिन पीना चाहिए परन्तु यह कहाँ से मिलता हैं एक बार अपने आप से सवाल करें?
यह सवाल नहीं अब मेरा विचार हैँ- अमूल दूध का दाम ऐसे बढ़ता रहेगा और हम चुकाते जायेंगे क्योंकि महंगाई का जमाना हैं. कुछ दिनों बाद दूध केवल हिंसक अमीर लोगों तक सीमित रह जायेगा ये  अमीर लोग पानी पीयेंगे दूध समझकर या फिर पाउडर।
   दूसरा सवाल यह है? कि गाय माता की जरुरत खत्म नहीं हुई परन्तु हम इनको सम्मान देने की बजाय कब तक ऐसे सजा देते रहेंगे।
इस पर मेरा विचार है- कि थोड़ा नैतिक ज्ञान की जरुरत है देश के उन विद्वानों को जो गद्दी पर बैठ कर दूध की जगह शराब का आनन्द उठाते हैं और दिन रात इसके बारे में नीतियॉं बनातें हैं.

   बस अब यही दो सवाल और मेरे विचार काफी हैं. मेरे जैसे आलोचना करने वाले तमाम लोग होंगे, परन्तु इन आलोचनाओं के पीछे मर्म है. उसे भी समझने की कोशिश कीजियेगा और ध्यान रखिएगा इनके साथ प्रेम जुड़ा हुआ है, बुद्धि जैसे जीवों के बारे में। इसीलिए मैने पहले ही परिचय करा रखा है। इस लेखन में विचारों की दिशा मात्र है और ऊर्जा तो आपसे मिलेगी।



   





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