Wednesday, 21 May 2014

उन उलझी बातों को ही अब क्यों न सुलझ जाने दूँ!

चुभ गयी जो बातें उन्हें कैसे मिट जाने दूँ
अपने किस्मत को ही कैसे बदल जाने दूँ
माफ करना कह कर कुछ रुक जाने दूँ
या रुकी बातों को जीभ से मचल जाने दूँ?

कुछ तरीकों से मैंने अब हिम्मत जुटाया है
ध्यान और ज्ञान के नतीजों से राहत पाया है
कभी चिंता में भटकने का परिणाम मिला था
अब भटकती राहों को ही फिर क्यों न बदल जाने दूँ?

बेशक मुझे अब नए रास्ते ढूंढने होंगे
पुराने रिश्तों को कुछ भूलने होंगे
अपनी खुशी के लिए भूलने की क्यों न दिक्कत हो
उन उलझी बातों को ही अब क्यों न सुलझ जाने दूँ?

8 comments:

  1. बढ़िया....हौसला बना रहे

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    1. जरूर ...........बस आप सबकी कृपा है !

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  3. बेशक मुझे अब नए रास्ते ढूंढने होंगे
    पुराने रिश्तों को कुछ भूलने होंगे
    अपनी खुशी के लिए भूलने की क्यों न दिक्कत हो
    उन उलझी बातों को ही अब क्यों न सुलझ जाने दूँ?
    ..सही कहा
    never let your past interfere with the flow of present day life.

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