Wednesday 14 May 2014

सामने वाला छोटू

   रात्रि काल में वह खुले आसमान तले गहरी नींद ले रहा था. प्रकाश थोड़ी बहुत उस पर जो पड़ रही थी वह मेरे सामने वाली खिड़की का कमाल था. परन्तु ऐसा भी नहीं था थोड़ी बहुत प्रकाश जुगनूं भी देने आ गया था. उसकी परछाई टिमटिमाते तारों ने टूटी चारपायी के थोड़े बगल ढकेल रखा था. उसके ख्वाब मानसूनी हवाओं ने उड़ा रखे थे. आज तो वही दिख रहा है. आसपास सन्नाटा है मानों बादलों की फिक्र भी कम हो गयी है और ये केवल चौकीदार ही है. यह चौकीदारी करने वाला लड़का किसका है? प्रश्न तो बनता ही है. जवाब भी उसकी टूटी खाट ही देगा। अकेले वह तो हवाओं से रक्षा करता है और फिर रात को इंजेक्शन लगाने वाले खून के आदी उस स्वतन्त्र जीव से. यह रात अब तो ऐसे ही उथल-पुथल करती रहेगी। यह क्या कर लेगा उसका तो है ही कौन?.  
    जब मेरी आँख थोड़ा सूरज की ओर देखती हैं. पता लगता है सूरज अभी पूरब  से आने ही वाला है और मैं आँख मल रहा होता हूँ अचानक हीं सामने उस तक निगाह जाते ही आँखे टकटकी लगा लेती हैं. वह बेवजह ही तो झाड़ू लगा रहा होता है जब वहां कोई आँख मलते हुए भी नहीं दिखता। अरे आज ये तो बहुत पहले जग गया. ऐसा हर दिन ही होता है मुझे क्या पता था? नहीं वह तो आज कच्छे गीले कर रखा है बिन नहाए ही. वो रात के आसमान का पानी है. संघर्ष तो आपस में मेरे रात वाले सवाल ही कर रहे थे. सामने संघर्ष करने की आवाज आयी। ओ छोटू तेरा उठना कब हुआ है? जी अांती अभी उठा हूँ वह छोटू ही था बड़े नादानी चाल में यह जवाब था. ओय! छोटू तेरा टयम कल से दूसरा होगा। अंकित स्कूल जायेगा उसके लिये तेरे को पहले उठना पड़ेगा। ठीक है अांती छोटू बोला।
    दूसरे दिन ऑन्टी उठी भी नहीं थी की छोटू अपने सुबह के सारे काम निपटा लिया ये काम थे अंकित का जूता साफ करना और सभी शयन वाले लोगों के लिये नास्ते का इन्तज़ाम। जब अंकित उठा था तो छोटू एक उसकी किताब पलट रहा था. किताब में उसने देखा की चार बालक स्कूल जा रहे है. छोटू उससे बोला अंकित भैया आप इन चारों के दोस्त हो? जरा स्कूल के बारे में बता दो.... ऑंटी ने कभी मुझे स्कूल के बारे मे नहीं बताया! छोटू की इस अज्ञानता की वजह शायद कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। इससे पहले तो वह ढाबे पे टिफ़िन देने का काम करता था.
   जब वह टिफ़िन देने एक बार नीचे मकान पर रहने वाले भइया के पास आया  था तब एक बार मैने पूछा था कहाँ घर है? छोटू ने बताया था घर तो कभी गया नहीं! यहीं मिलूंगा। इस अंदाज में उससे प्रश्न का उत्तर पाकर मुझे आश्चर्य जरूर हुआ था. अभी मैं देखता हूँ अंकित के आने तक तो वह घर के लगभग दिन भर के सारे काम पूरे मन से करता हैं. पोछा लगाता हैं उस जगह पर जहाँ सफाई कभी  घर बनते समय किसी कारीगर ने की थी!
    मैं उससे प्रतिदिन एक सवाल पूछना चाहता हूँ परन्तु उसे उस काम से फुर्सत नहीं। और कभी होता भी है तो घर के सामने धूप में उसी टूटी चारपायी पर बैठे घर रखाते हुए वह दिखता है. जब घर में कोई नहीं होता केवल वही होता है तो मुझसे पहले वह मेरी तरफ देखते हुए मुसकराते मिलता है और तभी अचानक मेरी भी नजर उस तक पहुँचती है और मैं भी मुसकरा देता हूँ. शायद वह भी मुझसे कुछ प्रश्न करना चाहता है परन्तु छोटू के सारे छोटे काम उसे इस पर विचार करने का समय नहीं देते। मैं उससे मन ही मन बहुत प्रश्न कर इस बात से खुश हो जाता हूँ कि चलो जिंदगी नहीं बन रही है तो इतना ही क्या कम हैं की उसे भीख नहीं मांगनी पड़ती। 
    सोचता हूँ की कानून के साथ चलूँ पर वहाँ समझ आ जाता है छोटू के मौलिक अधिकार अभी क़ाग़ज तक सीमित है एफ. एम. की आवाजों में कुछ हल है तो वह इसलिए है जिससे छोटू केवल सडक़ पर भीख मांगने के लिये मजबूर हो। शिक्षा तो वो बहुत ले चुका हैं उन सर्द व गर्म हवाओं के बीच. अब वह छोटू है तो छोटू ही रहेगा इसके लिये अभी वाला घर ज्यादा अच्छा है परन्तु जब एक दिन सच में स्कूल की जरुरत खुद से महसूस होगी तो निराशा उसके छोटू बनने की वजह से उसे होगी। और वह दिन छोटू को बड़ा बननें में शायद कभी मदद नहीं करेगा!

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