Monday 12 December 2016

दादी जी

लगता है, अभी दादी हैं। घर जाता हूँ तो लगता है हँसते हुए बोल देंगी 'बाबू'..आई गया..पनिया ले आयी...सच कहूं तो ऐसा कभी नहीं रहा होगा जो मुझसे बताती न रही हो दुःख सुख या किसी की कोई बात बेफिक्र। मैं समझाता तो अगर उन्हें समझ नहीं आता तो बिना कुछ बोले हंस देती। बहुत बार जब मेरे चेहरे को कोई घर का सदस्य न पढ़ पाता तो अक्सर वो बोल देती 'काव बात बाय'..पढ़त पढ़त मुरझाई गया..'आज काहे चिंता में हया' फिर मेरी और दादी का संवाद शायद बहुत ही अच्छा संवाद हुआ करता था।
दादी जी पढ़ने को शायद पहली क्लास भी नहीं पढ़ी थी। लेकिन ज्ञान का असीम भण्डार शायद मुझे अलग तरीके से प्राप्त हुआ। दादा जी और दादी जी में फर्क बहुत बड़ा था लेकिन कभी लगता नहीं था कि कोई फर्क है क्योंकि दादा जी और दादी जी दोनों से मिलकर ही मेरा बचपन मुझसे बचपन के तरीके से जिया गया। दादा जी थे तो कृषि अध्यापक और साथ ही उर्दू और अंग्रेजी के विद्वान। पशुओं से प्रेम करने वाले। इसलिए घर में किसी चीज की कभी कमी न रही। दादा जी और दादी जी के बिना मेरी जिंदगी का हाल क्या ही होता।
एक सुबह नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर अपने बीमार भाई को एक ट्रेन में बिठाने के लिए गया वह तारिख था दिसंबर का पहले हफ्ते का ही...जब पिछले साल दिसंबर में मुझे जानकारी मिली कि दादी जी बीमार है... फोन पर बताया गया कि दादी जी बीमार है लेकिन वह ठीक हो रही है ऐसा संकेत मिला...मैंने मन ही मन दुःख हुआ। अलग जाकर दूर आँखों में आंसू भी आये और पता नहीं क्यों मन ही मन भगवान् से विनती भी किया की दादी जी पूर्ण रूप से ठीक हो जाये। बस दादी जी को कुछ नहीं होना चाहिए। मेरी जिंदगी ले लीजिए भले ही लेकिन मेरी दादी जी को ठीक रखिये।शायद ऐसे ही भगवान को बहलाने का प्रयास करता रहता आया हूँ। लेकिन भगवान् न तो ठीक किये...उलटे ही दिनाक 10 को पता चला कि दादी जी नहीं रही...क्या???विश्वास तो नहीं हुआ लगा कि किसी को ऐसे कैसे पता लगा कि दादी नहीं रही।
पिताजी भी नहीं जान पाए होंगे। होंगे डॉक्टर बहुत बड़े अपने आप को समझने वाले। लेकिन दादी जी के साथ ऐसा हो ही नहीं सकता...शायद सुना था कि अक्सर कभी कभी साँसे लौट आया करती है। मैं भी चमत्कार और श्रद्धा से परिपूर्ण उसी की प्रतीक्षा में था कि मुझे मेरी दादी से मुलाकात हो जाये। मैं शताब्दी में बिना टिकट चलकर किसी तरीके से लखनऊ पहुंचा और फिर लखनऊ से घर बिना दिन पर कुछ खाये पीए....उस दिन की कहानी ध्यान आती है तो लगता है यात्रा वृत्तांत ही लिखना ठीक होगा। परंतु अगर बात करे घर पहुँचने को लेकर सभी लोग पिताजी, अम्मी, दीदी, भाई सब के सब बिना रोये अपना सभी काम सामान्य रूप से कर रहे थे। जब मैं पहुँचा शाम को तो दादी जी को लेटे हुए रजाई में देखा...अब तो मैं भी असामान्य से सामान्य हो चुका था।
पता नहीं क्यों लगा ही नहीं दादी जी नहीं रही। शायद वो थी तो भी हंसाती थी और नहीं है तो भी हंसाती है। रुलाया भी तो उनकी यादों ने कभी कभार...पर अहसास नहीं होने दिया कि अब वो हमारे बीच नहीं है इसलिए आज के दिन के दादी जी के स्वर्गवास का दिन भी याद नहीं रहा । लौटते हुए दीदी का फेसबुक पोस्ट पढ़कर लगा कि हाँ शायद सही कह रही होंगी। दोस्त से कहाँ कि दादी जी के बारे में लिखा गया है....मुझे तो याद ही नहीं रहा कि आज के ही दिनाँक 10 दिसंबर, 2015 को वो अलविदा कह गयी। शायद ऐसा इसलिए ही हुआ क्योंकि दादी जी हर पल साथ दिखती है....

प्यारी दादी जी अब आपको याद कर रहा हूँ....मेरे भविष्य अर्थात नौकरी, शादी की बड़ी चिंता थी आपको वह चिंता अब भी होगी तो निकाल दीजियेगा...देखिएगा आप मुझे मेरे भविष्य को चाहे दूर आसमान से ही क्यों न.



6 comments:

  1. दिनांक 13/12/2016 को...
    आप की रचना का लिंक होगा...
    पांच लिंकों का आनंद... https://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
    आप भी इस प्रस्तुति में....
    सादर आमंत्रित हैं...

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  2. प्रभात जी, सच है कि कुछ रिश्ते हमारे जीवन में इतने मायने रखते हैं, जिसे खोने की बात सुन कर हमारा मन बेचैन हो जाता है, पर यह भी एक सच है, उनके जाने के बाद भी हम पर उनका आशीष बना रहता है....

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  3. आत्मीय श्रद्धा से उपजी मर्मस्पर्शी लेखन ..
    सच कई अच्छे-बुरे प्रसंग सभी अवसरों पर अपनों की बहुत याद आती हैं, जो रुलाए बिना नहीं जाती ... और वह अपनी दादी हो नानी ये तो पग-पग पर याद आतीं हैं ..
    आज भी आपको बहुत याद आ रही होगी न, जन्मदिन है आपका,, जाने कितने दुवाएं देती जब आप पाँव छूकर ये कहते की आज मेरा जन्मदिन है ..
    आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनायें

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    1. आपकी शुभकामनाएं मिली। बहुत अच्छा लगा देखकर कि आपने जो भी कहा सब शायद उम्मीद भी नहीं कर सकता था...कि आप आज मेरे जन्मदिन के अवसर पर अपना कीमती वक्त दे देंगी। दिल से शुक्रिया। साभार

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