महके न धरती तब बरसात कराओ न
सौंधी सौंधी मिट्टी से मन को खूब रिझाओ न
मन की अभिलाषा है बस हरा भरा संसार रहे
गूगल से साभार |
चिड़ियां चहके, चमके तारे झिलमिल
ये संसार रहे
सूनी हो बगिया तो कोयल कोई आओ न
सोते हुए गहन निद्रा से सुबह सुबह जगाओ न....
सूना सूना संसार हुआ है, अंधा तो प्यार हुआ है
मतलबी इंसान हुआ है, रिश्तों में
व्यापार हुआ है
लोरी न माँ की तो तुम, अब आकर गले लगाओ न
तपते देह का आंसू लेकर पोखरा नया बनाओ न
महके न धरती तब बरसात कराओ न.....
-प्रभात
दिनांक 13/12/2016 को...
ReplyDeleteआप की रचना का लिंक होगा...
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आप भी इस प्रस्तुति में....
सादर आमंत्रित हैं...
बहुत-बहुत आभार !!!
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