Saturday 18 April 2015

ऐसा तभी हो सकता है

खामोश अक्स का उन्हें मालूम न हो
सुबह-सांझ कोई शिकायत न हो
कोई न संवाद न ही कोई कारण हो
ऐसा तभी हो सकता है
जब उन्हें मेरे प्रेम का मालूम न हो

एक बात ही केवल इशारों में हो
लिखा हुआ खत व्यापारों में हो  
कागज में हो मगर उसके जहाजों में हो
ऐसा तभी हो सकता है
जब मेरे प्रेम का उन्हें मालूम न हो

अविश्वासों के बीच एक विश्वास हो
हजारों में केवल एक अहसास हो
सपनों की उड़ान लिए ही कोई रात हो
कोशिश मेरी नाकामयाब हो
ऐसा नहीं हो सकता
ऐसा तभी हो सकता है
जब मेरे प्रेम का उन्हें मालूम न हो
-प्रभात 

12 comments:

  1. शुक्रिया ...........आभार सहित!

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  2. उम्दा रचना है |

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  3. सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
    शुभकामनाएँ।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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  4. कता बात है .. आजकल प्रेम है तो इज़हार कर देना चाहिए जल्दी से ...

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    1. जी सही ही कहा है आपने .....आपका आभार!

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  5. सुन्दर प्रस्तुति...

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