ये बारिश रोक दो सिवान का
मैं प्यासा ही रह
लूँगा
मेरी अमानत है इस माह का
खूब चाहा है जिसे पा
लूँगा
कितनी ख्वाहिशें थी मेरी, हरियाली भरी एक शाम
में
कुदरती करिश्मा था तब
बिन तूफानी राह में
अब ये चक्रवाती बाजारों का रुख मोड़ दो...
बेखबर था नहीं तब मैं तुम्हारे परिणाम से
मगर हैरानी है जो अब आ गए
कभी देखो रंग मेरे
चेहरे का
अब इसे खिल जाने दो...
-"प्रभात"
बहुत सुन्दर सृजन, बधाई
ReplyDeleteमेरे ब्लाग पर भी आप जैसे गुणीजनो क मार्गदर्श्न प्रार्थनीय है
शुक्रिया जितेन्द्र जी ........आपका आभार!
Deleteसंवेदनशील...विचारणीय प्रस्तुति।
ReplyDeleteशुक्रिया ....
Deleteपोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
आपका आभार ........आपकी टिप्पणी से बेहद प्रभावित हुआ ......
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