Tuesday, 14 April 2015

खूब चाहा है जिसे पा लूँगा.....

-Google
ये बारिश रोक दो सिवान का
मैं प्यासा ही रह लूँगा
मेरी अमानत है इस माह का
खूब चाहा है जिसे पा लूँगा

कितनी ख्वाहिशें थी मेरी, हरियाली भरी एक शाम में
कुदरती करिश्मा था तब 
बिन तूफानी राह में
अब ये चक्रवाती बाजारों का रुख मोड़ दो... 

बेखबर था नहीं तब मैं तुम्हारे परिणाम से
मगर हैरानी है जो अब आ गए
कभी देखो रंग मेरे चेहरे का
अब इसे खिल जाने दो...
-"प्रभात"

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर सृजन, बधाई
    मेरे ब्लाग पर भी आप जैसे गुणीजनो क मार्गदर्श्न प्रार्थनीय है

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    1. शुक्रिया जितेन्द्र जी ........आपका आभार!

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  2. संवेदनशील...विचारणीय प्रस्तुति।

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  3. पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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    1. आपका आभार ........आपकी टिप्पणी से बेहद प्रभावित हुआ ......

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