सुबह-सांझ कोई शिकायत न हो
कोई न संवाद न ही कोई कारण हो
ऐसा तभी हो सकता है
जब उन्हें मेरे प्रेम का मालूम न हो
एक बात ही केवल इशारों में हो
लिखा हुआ खत व्यापारों में हो
कागज में हो मगर उसके जहाजों में हो
ऐसा तभी हो सकता है
जब मेरे प्रेम का उन्हें मालूम न हो
अविश्वासों के बीच एक विश्वास हो
हजारों में केवल एक अहसास हो
सपनों की उड़ान लिए ही कोई रात हो
कोशिश मेरी नाकामयाब हो
ऐसा नहीं हो सकता
ऐसा तभी हो सकता है
जब मेरे प्रेम का उन्हें मालूम न हो
-प्रभात
Bahut achchha.
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद!
Deleteशुक्रिया ...........आभार सहित!
ReplyDeleteउम्दा रचना है |
ReplyDeleteहम आपके आभारी है ...
Deleteसुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteशुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
हम आपके आभारी है ...
Deleteशुक्रिया ..
ReplyDeleteकता बात है .. आजकल प्रेम है तो इज़हार कर देना चाहिए जल्दी से ...
ReplyDeleteजी सही ही कहा है आपने .....आपका आभार!
Deleteसुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteशुक्रिया!
Delete