कह गये क्योंकि शब्दों की कमीं न थी तुम्हारे पास
तुम्हारे लिए शब्द कम हो गये मेरे शब्दकोष में
तुमने अपनत्व का अहसास करा दिया शब्दों में
मेरे लिए मुमकिन था कुछ कह पाना तुमसे
वह क्षण शून्य था पर मुझे उम्मीद था तुमसे
कुछ मज़ाक का अंदाज़, कुछ शरारत
कुछ रिश्तों का जुड़ाव , कुछ स्मृतियाँ
और बहुत कुछ तुम्हे मुझसे भी
इसलिए तुम कहीं रुके और मैं चल दिया
अंततः तुम कभी चले और मैं रुक गया
एक प्रकाश की खोज में, थोड़े उत्साह से
तनिक भर खुशी के लिए, थोड़े विश्वास से
और वो सब जो मुझे उम्मीद था केवल तुम से
क्योंकि तुम्हारा अंदाज़ मेरे जीवन का अहसास था
यह अहसास जो ज़िन्दगी के उन क्षणों के लिए था
जब मेरे लिए उन दिनों उतार चढ़ाव के दिन थे
दिन प्रतिदिन की हलचल के ख़बरों के दिन थे
मेरे लिए शोक के दिन थे तो कभी उदास के थे
इन सबके बावजूद तुम और तुम ही निरंतर साथ थे
मेरी ‘चुप्पी’ के बावजूद तुम हर पल ख्वाबों के साथ थे
और तभी मैं उबरा और निकाल पाया अपने बीते दिन
बिना किसी झुकाव के, बिना किसी रुकावट के
झुका भी तो तुमसे ही, रुका भी तो तुम्हारे लिए
देखता रहा, इंतज़ार करता रहा हर उस मिलन की
और तुम ने अपनी ज़िन्दगी के उन पलों को मिलाया
मुझसे कुछ अपने आप से भी मेरे लिए
इन सबके लिए और भविष्य के लिए भी
साभार, शुक्रिया तहे दिल से बारम्बार
-प्रभात
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (30-04-2016) को "मौसम की बात" (चर्चा अंक-2328) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही भावपूर्ण लेखन।
ReplyDeleteशुक्रिया
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