मेरी चाहत मेरे से दूर हो पर फिर भी तुमसे तुम में ही मिल जाने को
जब धूप में तुम्हारी छाया
हो
इन आँखों में तुम्हारी
काया हो
दिल में एक दीदार समाया
हो
हवाओं में जैसे कुछ
गुनगुनाया हो
फिर मेरी मोहब्बत क्यों ढूंढती
हो इन आँखों को आँखों के सामने
कहती हो क्यों पास आकर
मेरे हर सपनों में समां जाने को
मेरी चाहत मेरे से दूर
हो पर फिर भी तुमसे तुम में ही मिल जाने को
जब तुम्हे देखकर हमेशा मेरा
अक्स खिल गया हो
तुम्हारी बातों में मेरी
बातों का मिलन हो गया हो
अधूरा सपना तुम्हे पाकर
एक कहानी बन गया हो
मुसकराकर देखने से मुझे मेरा
मन बहल गया हो
फिर मेरी मोहब्बत क्यों
करती हो इंतज़ार रोजाना उसी रास्ते का
कहती हो क्यों देखकर
मुसकराने को हर रोज मेरे आईनें को
मेरी चाहत मेरे से दूर
हो पर फिर भी तुमसे तुम में ही मिल जाने को
जब तुम्हे मेरी कमी का एहसास
हो गया हो
हरदम मेरी फ़िक्र करने का
ज्ञान हो गया हो
हर रास्ते में तुम्हारा
और मेरा साथ हो गया हो
मंजिल के इंतज़ार का दिन
समाप्त हो गया हो
फिर मेरी मोहब्बत क्यों
एहसास कराती हो मुझे अपनी कमी का
कहती हो क्यों नहीं इन
यादों को भी अपने साथ मुझसे मिला जाने को
मेरी चाहत मेरे से दूर
हो पर फिर भी तुमसे तुम में ही मिल जाने को
-प्रभात
(इमेज केवल काल्पनिक और सजावट के तौर पर गूगल से लेकर लगाई गयी है!)
-प्रभात
(इमेज केवल काल्पनिक और सजावट के तौर पर गूगल से लेकर लगाई गयी है!)
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-04-2016) को "नैनीताल के ईर्द-गिर्द भी काफी कुछ है देखने के लिये..." (चर्चा अंक-2306) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत-बहुत आभार!
Deleteसुंदर भावों से सजी रचना । बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया!
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