ये सही है न्याय में व्यवधान आ गया है
ये सही है न्याय में पुरस्कार आ गया है
ये सही है न्याय में दलाल आ गया है
ये सही है न्याय में अभिमान आ गया है
कौन हो माई लार्ड! किस- किसका दबाव है
जनता का दबाव है या सरकार का दबाव है
गरीबी का दबाव है या पैसे का दबाव है
केस का दबाव है या ज्ञान का अभाव है
रिश्वत का अभाव है या छुट्टी का अभाव है
जीवन लेने का अभाव है या देने का अभाव है
क्या कोई फरियाद है या सब व्यवसाय है
टपकते आंसुओं ने किसका दर्द धोया
किसी गरीब का धोया या भुखमरी पर रोया
कब्जाई जमीन पर रोया या किसी मौत पर रोया
किसी शरीफ इंसान पर रोया या किसी जान पर भिगोया
श्रमिकों के दिलों को भिगोया या बलात् श्रम देख रोया
नारियों के अपमान पर रोया या शोषितों पर रोया
फैले अन्धकार पर रोया या गलत व्यवहार पर रोया
ये सही है न्याय मिलने में देरी हो रही है
पर क्या देर है तो अंधेर नहीं?
ये सही फैसले सैकड़ो एक साथ लिए जा रहे है
पर क्या दोषियों और बेकसूरों में फर्क है?
एक ही प्रोटोकॉल से केस सुने जा रहे है
पर क्या वो प्रोटोकॉल व्यवहार में संभव है ?
ये सही है वकीलों को अच्छे से सुना जाता है
पर क्या गरीब व अमीर के वकीलों को एक जैसा?
ये सही है आप मामलों का संज्ञान लेते है
पर क्या अँधेरे में टीवी के दूर भी?
ये सही है आप पर दबाव होता है
पर क्या गुनाहगार मुवक्किल से ज्यादा
जहाँ साबित करना हो कि मैं गुनाहगार हूँ
जहाँ बिक गयी हो आप से पहले पुलिस तंत्र
जहाँ हो गया हो पूरा मामला रिश्वत पर भ्रष्ट
जहाँ पर आरोप लगे हो फर्जी दस्तावेजों पर
और आपके उस सैकड़ों निपटाएँ गए केसों में से एक यह भी हो
बेल का केस मुलजिमों जैसे सुलूक की गयी और जेल में पड़ा हो
और इस बेल के बाद तारीख पर तारीख
और फैसले हमारी पीढ़ियों ने भी न देखे हो...........
ये सही है आप पर दबाव होता है
पर क्या रेपिस्ट, घोटालेबाजी किसी दोषी को सजा न सुनाने से ज्यादा
पहले मामला लटकाया जाना
और धीरे धीरे मिलीभगत हो जाना
अच्छे वकील के बहस करने से
और राजनीतिक दबाव से बाद में बेक़सूर बताये जाने से ज्यादा
कौन हो माई लार्ड! अगर न्याय में संविधान
अंतिम सत्य है
अगर न्याय में पुनराविलोकन का कोई अर्थ है
अगर न्याय में भाषाई धर्म का भेद भाव नहीं
अगर न्याय में पैसा और शक्ति का अर्थ नहीं
अगर लिंग और जातियों में असमानता नहीं
तो फिर इन आंसुओं को जो बहाया है मंच पर
एसी के अन्दर, नेताओं और सरकारों के सामने
किसके लिए? क्या अपने लिए?
या जेल में सड़ते बेकसूरों के लिए
अधिकारों से वंचितों के जीवन के लिए
इस देश के लिए? या फिर अपने लिए .....?
-प्रभात
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " श्रीनिवास रामानुजन - गणित के जादूगर की ९६ वीं पुण्यतिथि " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteधन्यवाद ...साभार
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