Wednesday, 16 March 2016

आज तक भूला नहीं वह चाॅकलेट

मेरा हौंसला बढ़ाया था उस वक्त जब 
मैं हार गया था किसी प्रतियोगिता में
आज तक भूला नहीं वह चाॅकलेट
यही उपहार था तुम्हारे शब्दों में 


मेरे लिये मेरी प्रतिभा का
परन्तु वह उपहार था
मेरे साहस और परिचय का
खुद स्वआकलन करने का खुद से
मैं भूला नही उस भीड़ को
जिस भीड़ में मैं अकेला था
बस तुम्हारे लिये
मुझे इस योग्य समझा
और सबसे अलग अपना पहचान बनाया
मेरे सामने और अपने सामने भी
ऐसा अनुभव मुझे तब हुआ
जब मैंने पहचाना और देखा
उस सुन्दर और प्यारी इक परी को
जो मेरे जैसे हार गयी थी
सबके सामने मानो उस भीड़ में
पहचाना मैंने उसकी प्रतिभा को
उस छोटे चाॅकलेट की कीमत को
उसमें समावेश था
एक जीवन का सार वह संसार
उन हौंसलौं का तार
जिसने दिया ज्ञान
जीवन के लिये खुशियों का उपहार
बिना कुछ छीनें
भर दिया मुझमें अपना अनवरत प्यार
- प्रभात

6 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17 - 03 - 2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2284 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. अच्छी लाइने लिखी , प्रयास अच्छा है

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