सूरज तुम्हारी लाली, आँगन में जो आती है
मेरे बचपन के दिनों को बहुत याद कराती है।
कोयल की कूं –कूं के साथ सुबह तेरा होना,
फूलों के गुच्छों का, सूरज तेरी ओर होना;
उठ कर बैठे देर तक तुम्हारी याद दिलाती है ।
पानी भर कर इंतजार करती, मेरी माँ प्यार से
बार बार दूर भागता, फिर पकड़ती और मुस्कुराती;
मेरे लिए पहले ही चटाई लगाती थी, याद से
सरसों के तेल से मालिश करना और
गोद में होने का सुन्दर अहसास कराती हैं ।
मेरे बचपन के दिनों को बहुत याद कराती है।
शाम की चर्चा पर बैठे अलाव के पास,
खेलते हुए और कहानियों पर हँसते हुए;
अब भी दादी का बनाया पकवान खाकर,
रजाई में सोये दादा के साथ; दादी की याद आतीं है।
बन्दर की टोपी पहनानें, चांदनी रात बुलाती हैं।
ओंस भरी सुबह, रातों का सुन्दर अहसास कराती है।
-"प्रभात"
बचपन क़ि यादो को समेटी एक सुन्दर पोस्ट !
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा , मैं आपके ब्लॉग को फॉलो कर रहा हूँ ताकि नियमित रूपसे आपके ब्लॉग को पढ़ सकू ! आप मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं आशा करता हूँ क़ि आपके सुझाव मुझे मिलते रहंगे !
मुझे भी बहुत अच्छा लगा यहाँ आपसे मिलकर............जरुर आते रहिये और अपने सुझाव भी देते रहिये! साभार
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (17-11-2014) को "वक़्त की नफ़ासत" {चर्चामंच अंक-1800} पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत-बहुत शुक्रिया ...........तहे दिल से आभारी हूँ आपका!
Deleteसुन्दर रचना.........
ReplyDeleteधन्यवाद!
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