Sunday 14 September 2014

बस कभी-कभी!


(1)
ए खुदा मुझे क्यूँ रुलाता है बार-बार
ये जानता है खुशियाँ नहीं मिलती हर बार
हम सही है इसमें बहुत शक होता है तुम्हे
फिर उन लोगों का क्या जो धोखा दे जाते है एक बार ।
(2)
मैंने सीखा है बहुत कुछ और सीखता रहा हूँ
दूसरों की खुशी के लिए अपनी खुशिया बेचता रहा हूँ
गम बाटनें का कोई सरल तरीका निकालते
ये क्या जो हर बार आंसुओं को बिखेरता रहा हूँ ।

(3)
वे समझने लगे हैं अब मदिरे को पानी
अब देख कर उनको होती न इतनी हैरानी
क्योंकि मदिरे का पानी रोकता है उनके आँखों के पानी को
फिर गुजरती है खुशियों में उनकी जिंदगानी ।
                                                              -"प्रभात"






5 comments:

  1. मैंने सीखा है बहुत कुछ और सीखता रहा हूँ
    दूसरों की खुशी के लिए अपनी खुशिया बेचता रहा हूँ

    Bahut Sunder... Jeevan Yun Hi Chalta Hai

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  2. वे समझने लगे हैं अब मदिरे को पानी
    अब देख कर उनको होती न इतनी हैरानी
    ...जब कोई मदिरा को ही दवा समझ बैठे फिर उसे देख सच हैरानी नहीं होती ..
    बहुत सटीक

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    1. बहुत धन्यवाद....सच कहा है आपने

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  3. वे समझने लगे हैं अब मदिरे को पानी
    अब देख कर उनको होती न इतनी हैरानी

    बहुत सटीक
    Recent Post कुछ रिश्ते अनाम होते है:) होते

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